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________________ .:.--- '-:" ' ... - || लोकप्रकाशे प्रथम सर्गः ॥ भेदयन्त्रकम् ॥ उद्धरणकालः ( पकैक बालाप्रम्य या आकाश प्रवेशस्य) उद्धारसमाप्ति कालः प्रयोजनम (७) प्रति समये ३३०७६ इत्यादि ३७ अंक | सू. उद्धार पायो. समजेदला ममय । मंण्यात अषा माटे. ममय ) जि समय की बर्य नोपसमद्रांनी पंन्या मपाय रे. दर १०० वर्षे | घा० उ० ना चालान जेट-सू. अद्धा पस्यो समलां १०० वर्ष ( मल्यात जवा माटे. १०० वर्ष ) दर १०० वर्षे असंख्यात अपं. आयष्य. काय स्थिति, क. मस्थिति, उत्सपिणी ___ आदि मयाय इंद्र प्रति ममये अर्मग्य कालचक्र |सूमक्षेत्रपम्यो० समजषा माट. प्रति समये असंख्य काळचक्र जीवादिद्रध्य मख्या मपायछे | केटलांपक स्पृष्ट उद्धरणथी | केटलापक अम्पृष्टथी कंट लांपक उभयथी.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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