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॥ श्रीलोकनकाशे प्रथमः सर्गः॥ १. चादर उसार पल्योपम (वा सागरोपप) २. सूक्ष्म उद्वार पल्पोपम (वा सागरोपम) ३. चादर अद्धा पल्योपम (वा सागरोपम) ४. सूक्ष्म अखा पल्योपम (वा सागरोपम) ५. बादर क्षेत्र पल्पोपम (वा सागरोपम) ६. सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम (वा सागरोपम)
___उत्सेधांगुले निष्पन्न थयेक [ उत्सेधांगुळमानवाळा ] १ योजनप्रमाणनो उदो-लांबो-अने पहोलो पो जे मोटो खाडो-कबो ते पत्य कहेल छ, ।।७१|| ते पश्यनी गोळाइनो परिष ? योजनना किंचित न्यून ६ हा भाग युक्त ३ योजन प्रमाण छ, [ अर्थात् किंचित् न्यून:१ योजन हेराले मारे देश
अथवा उत्तरकुरु मनुष्योना मुंढोवेला मस्तकपर एकधी सात दिवस सुधीना उगेला बालानना राशिवडे पूरचो ॥७३॥ ए क्षेत्रसमासवहत्ति अने जम्बूद्वीपपज्ञपितत्तिनो अभिमाय कयो.
प्रवचनसारोद्धारष्ट्रति-अने संमहणीनी वृत्तिमा सो ए प्रमाणे कडु के के-" मस्तक मुंडाव्ये छते एक दिवसनाचे दिवसना यावत् उत्कृ घटथी ७ दिवसना उगेला वालाग्रो" इत्यादि सामान्यपणे कडेवाधी उत्तरकुरुमनुष्यना चालाम(के कोइ बोजा क्षेत्रवर्ती मनुष्यना बालाघ्र? ते) कया नथी एम जाणवु. अने वीरअपसेहर क्षेत्रविवारनी स्वोपैजत्तिमा तो " देवकुरु अने उत्तरकुरा उत्पन्न श्रयेला सात दिवसना जन्मेला बेटाना १
* अहिं बालाप पटले पामी अग्रभाग नहिं पण “ अमुक प्रमाणनो पाळ " से वाला कवाय अन शब्द अमुक प्रमाणवाचक छ जेथी मुंडापनदिनथी सात दिवस सुधीमा जेटला बध तेटला बालोन वालाय लेघु,
१५ युगलिक मनुष्योने मस्तक मुंडावानु होय महिं परन्तु कोरपण मुंहावेल मस्तवाला मनुष्यनो पकथी लास दिवस सुधीमां जेटलो वाळ उगे ते बाळ अणावमा शुष्टांत मात्र आपत्रानु छे.
२ क्षेत्रसमासनी हेली गाधान हेल वरण "वीरंजयहरपय, ५ प्रमाणे होषाथी ए लघुक्षेत्रसमास नाम धीरजथहर क्षेत्रसमास" छ.
३ मूळकर्तानी रनेली.