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छे ।।९७|| कई छे के- “प्राणी वघयो विराम पामेला जत्रो दीर्घ आयुष्यवाळा अने निरोगी होय छे, इत्यादि भाषा वीतराग भगवाने प्रज्ञापनी नामनी कहेली छे " ||१८|| वळी मारनारने निषेध करवारूप भाषा छट्टो ( प्रत्याख्यानीनामनी) (६) छे, अने कार्य पूछनारने पोतानी सम्मति आपदाथी सातमी ( इछाम (कुल) नामनी) भाषा ( ७ ) . ॥९९॥ जेम कार्यने आरम्भ करतो कोइ पुरुष कोइकने पृछे, तो ते कहे के हे मित्र ? आ कार्य शीघ्र करो, गारे पण ए कार्य सम्मत (इष्ट) छे, (इच्छा(मेमो भाषा) के || १४००॥ ज्यारे एकी वखते घणां कार्य आवी पडे त्यारे हवे कयुं कार्य करु? एम कोक पुरुष कोइकने पृळे ॥ १४० १ तो ते कहे के तने जे ठीक लागे ते कर, एम कहे ते अनभिगृहीस नामनी भाषा ( ८ ) जाणवी ।। १४०२ । अने एज सम्बन्धमा निर्णय करेला कार्यने दर्शानवा चाळी, जेम हालमा आ कार्य कर अने आ कार्य न करतुं ( एम कहेवारूप ) अभिगृहीता नामनी भाषा [ ९ ] जाणवी || १४०३|| वळी जे भाषा अनेक अर्थ
वा वाळी होय ते संशयकारिणी भाषा (१०) ले, जेम सैंधव कहेवामां लूण अने घोडानो संशय याय (कारणके " संघव " शब्दनो अर्थ ऌण विशेष अने घोडा ए बन्ने थाय . ।। १४०४ ॥ वळी जे भाषा स्पष्ट अर्थने कहेवावाळी होय ते व्याकृत भाषा (११), अने गम्भीर अर्थ अथवा अस्पष्ट अक्षरवाळी ते अव्याहन भाषा [१२] वाय. ॥१४०॥ ए प्रमाणे पहेली ऋण (सत्य-असत्य - ने मिश्र) भाषा दश दश दवाळी अने चोधी (व्यवहार) भाषा १२ मे ते सर्व मन्त्री भाषाना ४२ भेद श्री जिनेश्वरोए कहेला छे ॥ १४०६ ॥ वाळा जीवो सर्वश्री अल्पं ले, अने शेष ऋण भाषावाला अनुक्रमे अने चारथी पण अभाषक ( एकेन्द्रियने सिद्ध मळीने सर्व जीवो अनन्तगुणा अधिक छे. (११४०७॥ ए प्रमाणे योगद्वार कधुं ॥ इति योगद्वारम् ||३१|| ॥ योगभेद यन्त्रकम् ॥
|| योगद्वारे भाषावाग्योग विचारनिरूपणम् ॥
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१ सत्यमनोयोग असत्यमनोयोग
मनोयोग भेद ४
सत्यवचन योग असंख्यगुणा है,
३ मिश्र ( सत्यासत्य ) मनोयोग
४
व्यवहार (असत्यामृपा) मनोयोग