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॥ श्रीवीरप्रदेशप्रमाणविरोधनकापरिहारः ॥ पवा सूची ( अणि ) प्रमाणांगुलबडे पृथ्व्यादिनुं माप न कर.
॥ इति पथमविरोधापहारः ।। तथा “बे उम्सेधांगुले भीवीरनुं पक आत्मांगुल थाय' प. संबंधमां मे विरोध दर्शाग्यो ते पण परमार्थ नहिं जाणाधी अयुक्त छे. कारण के भगवान श्री वर्धमाम स्थामी सूत्रान्तरोमां कया प्रमाणे आमांगुलपटे ८४ अंगुल, अने उस्लेधांगुलपडे १६ अगुल गण है. श्रीअनुयोगदार चूर्णिकारे का छे के-- " त्रीरो आपसंतरओ आय गुलण चुलती अंगुलमुनिय. यो । उस्से गुरुओ सयमसटि हवा . माटे अम्म्मेघांगुले श्रीधीरन १ आत्मागुल थाय. बळी जेओना मते श्रीवीरमगवान मारमा गुलबरे १२० अंगुलप्रमाण छ, तेसोना मत प्रमाणे समचतुरबबाहा मतियाहा गणितमा (समचारस क्षेत्रफलमा गणितना) कापडे बे उत्सेधांगुले श्री वीरनु १आश्मांगुल थाय. ते फेषी रीले ? पम जो पूछता हो तो कीप छीप केजो भगवाम् आत्मांगुलबजे १२० अगुल प्रमाण हो तो हस्त संख्याए पोताना ५ हाथ प्रमाण रहे. अने पूर्वं कहेला १६८ अंगुलथी एयेला ५ हाथ समी . रस क्षेत्रफळना हिसाबे ४९ हाथ थाय, अने एक हाथ पडी अने केश विगेरेमा प्रमाणनो गणतां सर्व मलीने ५० वाथ (क्षेत्रफळ प्रमाणे ) थाय ए ५० हायर्नु अई करता २५ हाथ थाय. ( तो ५. x ५= २५ ए रोते २५न क्षेत्रमूळ ५ हाथ आषवाथी प्रथम का प्रमाणे १२. आत्मांगुल पवाथो बे उत्सेधांगुले श्रीवीरनु १ आरमांगुल ( सभघोरम क्षेत्रफळनी रीते ) प्राप्त पयु. अने जो बाहागणितमी अपेक्षा न रात्रीप तो भगवतमा १ मामांगुलना १ उत्सेधांगुल पूर्ण. अने बीजा उत्सेधांगुलना पांचीया बे भाग (= , २ उत्सागुल ) थार. ते आ प्रमाणे-जी १२० आमांगुलमा १६८
उरसेधांगुल प्राप्त थाय तो एक आत्मांगुलना कटला उत्सेधांगुल प्राप्त थाय ? अहिं विराशिस्थापमा १२०-१६८-१ थाय, स्पां अन्त्यमा १ बरे मध्यराशि १६८ ने गुणतां १६८ आये, अने प्यार वाद १६८ ने प्रथमराशि १२. परे भाग आपती १ उत्सेधांगुरू संपूर्ण आवे ने शेष १८ षधे तेनी कोवीसपदे अपवर्तना फरषाथी ४८ मे स्थाने २ अने १२० ने स्थाने पांच आवे जेषी एक पूर्णाकरे पश्चर्माण (२) उस्सेधांगुलमो १औषीपनो
मात्मांगुल पाय.
बळी अोमा मते मगवान् १०८ मारमांगुल प्रमाण छ, तेसोना मले भी वीरनु पक आत्मांगुल , ५ उम्सैधांगुल जेटल पाय, अहिं पण त्रि
राशिनी रीति पूर्ववत जाणवी.