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[द्वार
(५३२)
(५) पांचमा देशविरसगुणस्थान के- पण तेज प्रमाणे भावोना श्रण प्र कारो पड़े छे मात्र अहीं क्षायोपशमिक भागमां देशविरतिचारित्र वधारे होय छे.
|| गुणस्थानकद्वारे गुणस्थानेषु भावद्वारविचारः |
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(६-७) छड्डा प्रमत्त संयत गुणस्थान के अने सातमा अप्रमत्त संयतगुणस्थानके - पण उपर प्रमाणे भावोना ऋण ऋण प्रकारो पढे छे, मात्र अहीं लायोपशमिकभावमा देशविरतिने पदले सर्वविरतिचारित्र गणं.
(८ यी ११ उपशमश्रेणिगत) आठमु अपूर्वकरण गुणस्थानक, नवसु अनिवृत्तिबादरसंपराय गुणस्थानक. दशसु सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानक अने अगीयारसु उपशान्तमोहवीतराग छद्मस्थ गुणस्थानक ए चारे उपशमश्रेणिगत गुणस्थान कोमां-याबोना वत्रे प्रकारो पड़े छे. औपशमिक सम्यक्त्वाळा जोवो उपशमश्रेणि करे छे तथा क्षायिकसम्यक्त्ववाळा पण उपशमश्रेणि करे छे, आ प्रमाणे वे प्रकारना जीवो उपशमश्रेणिकरता होवाथी भावना वे प्रकारो धाय छे, पहेलो प्रकार-उपशमसम्यक्त्त्व वाळा जीवो उपशमश्रेणि करे तो १ - औदविक २- क्षायोपशमिक ३ -औपशमिक अने ४ - पारिणामिक ए चार भावो होय छे, अने क्षायिकसम्यक्त्वसहित उपशमश्रेणि करे तो १- औदयिक २- क्षायोपशमिक ३ - औपशमिक ४क्षायिक भने ५ - पारिणामिक ए पांचे भावो साथ होय छे, कारण सम्यक्त्व क्षायिक होवाथी क्षायिकभाव के अने चारित्र औपशमिकभावनुं होवाथी औपनमिक भाव पण छे, बाकी ज्ञान, दर्शन अने लब्धिओ क्षायोपशमिकभावे, मनुष्यगafeit औदकभावे अने जीवस्त्र भव्यत्तव पारिणामिकभावे होयछे, विशेषस्वरूप जे जे गुणस्थानके तरतमवाए होय छे त्यां त्यां विशेष ग्रन्थोथी जोड़ लेवु.
(८ थी १० तथा १२मु क्षपकश्रेणिगत) आठमु, नवमु, दशमु अने बारमुं क्षीणमोहवीतरागछद्मस्थगुणस्थान ए चारे क्षपकश्रेणिवर्ति गुस्थानकोमां- औपशमिकभाव शिवायना ? - औदयिक २- क्षायोपशमिक ३ -क्षायिक अने ४ - पारिणामिक ए चार भात्रो होय छे, उपशमसम्यक्त्वसहित क्षपकश्रेणि थती नथी. तेमज क्षपकश्रेणिये चढेलाने औपशमिकचारित्र पण होतुं नथी.
(१३-१४) तेरमु सयोगिकेवलिगुणस्थानक अने चौदमु अयोगिकेवलिगुणस्थानक ए वे गुणस्थानको मां क्षायोपशमिकभाव निवृत्त थयेलो होवाथी १औदयिक २- क्षायिक अने पारिणामिक ए ऋण भावो होय है, औदयिकमा - म मनुष्यगति आदि, क्षायिकभावमा केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिकसम्यक्त्व,
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