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(५६०) || गुणस्थानकद्वारे गुणस्थानेषु अन्तरद्वारविचारः ॥
खार
पछी अवश्य कोइ जीव क्षपकश्रेणिकरनार लभ्य होय, सिद्धिनो उत्कृष्ट विरह छ मासनो होय, जेथी छमासे अवश्य क्षपकश्रेणिकरनार होयज.
( १३ मुं ) तेरमा सयोगिकेवलिगुणस्थाने जीवो सर्वदा विद्यमान होवाथी तेनुं अन्तर पडतुं नथी अने एकजीवापेक्षया पण ते गुणस्थान फरी पामवानुं नधी तेथी तेनुं अन्तर बताव्युं नथी.
( १४ मुं) अयोगिकेष लिगुणस्थाननुं एकजीवापेक्षया फरी ते गुस्थान पामवानुं न होवाथी अन्तर पडतुं नथी, अने नानाजीवापेक्षया उत्कृष्ट अन्तर छमासनुं होयछे, एटले के चौदमे गुणस्थाने कोइ पण जीव न होय तेवो विरकाल पडे तो उत्कर्षथी छमास सुधी कोड़ पण जोत्र चौदमुं गुणस्थान पातो नयो, छमास बाद अवश्य कोइ जीच च गुणस्थान पामे आ प्रमाणे अन्तरद्वारस्वरूप जाणवु.
अन्तरद्वारनो प्रसङ्ग होवाथी गुणस्थानकीमा अनेक जीवोनी अपेक्षाये प्रतिपत्तिने उद्देशी अन्तर जाणया कंइक विशेष विचार विशेष जिज्ञासुओ माटे बतावीये छीये.
चोथा अविरतसम्यम्ष्टगुणस्थान के पूर्वमतिपत्र जीवो तो सर्वदा असंख्यात विद्यमान छे, पण एक जीव अविरतसम्यग्दृष्टि पाम्या पछी चीजो को पण जी ते गुणस्थान न ज पा तेनुं मतिपत्तिनुं अन्तर पड़े तो सात दिवसनो निरन्तर अन्तर काल को छे, अर्थात् एक जीत्र चोधुं गुणस्थान पाम्यस पछी बीजो कोड़ जो वो गुणस्थान उत्कर्षथी सात दिवसने अन्तरे अवश्य पामे, एज प्रमाणे देशविर गुणस्थाननुं प्रतिपत्ति अन्तर चौद दिवस के, सर्वविरत गुणस्थाननुं प्रतिपत्ति अन्तर पंदर दिवस काल प्रमाणनुं छे. अने अयोगिगुणस्थाननुं प्रतिपत्ति अन्तर छ भासनुं होय छे, मुक्तिनो विरहकाल पण छ मास ज छे, कथुं छे केसम्मा तिमि गुणा, कमसो सग चोदस पन्नरदिणाणि । छम्मास अजोगिसं, नको त्रिपरिवज्जइ समर्थ || १ || " श्री आवश्यकमा देश निरतिनुं प्रतिपत्ति अन्तर बार दिवस कधुं छे. " विरयाविरइए होइ बारसगं " जघन्यथो तो सर्वे ठेका प्रतिपत्तिने उद्देशौ अतरकाल १ समय मात्र छे. आ प्रमाणे अन्तरबार स्वरूप करूं. ( ७ मु भागद्वार ) सातमा भागद्वारनो विचार नवमा अल्पबहुत्वद्वार विचारनी अन्तर्गत होवाथी अल्पाबहुत्वहारनी साथै ज ते कवाशे.
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