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________________ (९५६) गुणस्थानकद्वारे गुणस्थानेषु कालान्तरद्वारविचारः ॥ 'द्वार णे एक जीवापेक्षाये काल कह्यो, नानाजीवापेक्षाये सयोगिकेवलिगुणस्थाने वर्तता जीवो सदाकाळ विद्यमान होवाथी तेरमा गुणस्थाननो बिरह पडतो नथी एटले के सयोगिकेवलिगुणस्थान अनादि अनन्तस्थितिमान जाण. (१४) बौदमु अयोगिकेवलि गुणस्थान एकजीवापेक्षया अजयन्योत्कृष्टस्थितिये पवस्वाश रोचारणस्वरूप अन्तर्मुह त जीवापेक्षा पण अजघन्योत्कृस्थितिये अन्तर्मुहुर्त स्थितिमान जाणवु मात्र एक जीवापेक्षाना अन्तर्मुहूर्त काल करता नानाजीवापेक्षाये सात समय अधिककाल जाणवो कारण सिद्धि प्राप्तिनो निरन्तरकाल उत्कृष्ट आउसमयनो के अने अयोगिगुणस्था ननो काल अन्तर्मुहूर्त अनुभवी जीव मुक्ति प्राप्त करे छे, ते अन्तर्मुहूर्तकालमा प्रथम समयनो समावेश थह जाय छे, दोजाथी आठमा सुचना सातसमयो सुधी निरन्तर अयोगिगुणस्थानमां जीवो प्रवेश करे छे. अने नवमे समये अवश्य अन्तर पडे के मारे सात समयाथिक अन्तर्मुहूर्तकाल अयोगिगुणस्थाननो जाणवो. आ प्रमाणे कालवार स्वरूप निरूपण कयूँ. हवे कालद्वारा प्रसङ्गधी गुणस्यानकोनो नाना जोवोनी अपेक्षाये निरन्तर प्राप्तिकाल जाणवा माटे आटलो विशेष समजवो, सम्यक्त्य अने देशविरतिमां वर्तता पूर्व प्रतिपद्मजीव तो अनेक जीवोनी अपेक्षाये सर्वदा विद्यमान होय छे, पण प्रतिपद्यमाननी अपेक्षाये जघन्यथी एक समयज प्रतिपद्यमान होय, बीजे समये अन्तर पढे अने उत्कर्षथी आवलिकाना असङ्ख्यात्मा भाग सुधी निरन्तर सम्यक्तव तथा देशविरति पामता जीवो होय, त्यारपछी अवश्य अन्तर पडे, सर्वविरतिचारित्रमां पण तेज प्रमाणे ( जघन्यथी १ समय प्रतिपद्यमान होय ) आण. मात्र उत्कर्षथी सिद्धिप्राप्तिनो जेम आठ समय सुधी निरन्तर सर्वविरति पामता जीवो होय, त्यारबाद अवश्य अन्तर पढे, उपशमश्रेणि तथा उपशान अवस्थाने पामता जीवो जघन्यथी एक समय अने उत्कर्षथो संख्याता समय सुधी प्राप्त करे ते पछी अकप अन्तर पडे क्षपकश्रेणिना प्रतिपद्यमानजीवो पण तेज प्रमाणे जाणवा. ( इति कालद्वारस्वरूपम् ) (६ डुं अन्तरद्वार) अन्तर एटले अमुक गुणस्थान प्राप्त कर्यु होय तेनाथी पीजामां संक्रमण करे अने त्यारबाद केटलोफ काल फरी जेटले काले ते मूल गुणस्थान माप्त करे ते चचलो काल अन्तर कहेवाय. ( १ ) एक जीवापेक्षया पलं मिथ्यादृष्टिगुणस्थान त्याग करीने -+
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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