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________________ (५६४) ॥ गुणस्थानबारे गुणस्थानेषु कालखारविचारः॥ (बार स्थानकोमां अप्रमत्तमुनि थायछे ते दरेक स्थानको असंख्य लोकाकाशपदेशममाण होयछे, संयतभावमा वर्तता ते मुनिए ज्यांमृधी उपशमश्रेणिके क्षपकश्रेणिमा आरोहण कर्यै नथी त्यांसधी तथा स्वभावथी अन्तर्मुहर्त सुधी संक्लेशस्थानकोमारहीने विधुदिस्थानकोमा जायछे वली अन्तसंहर्त सुधी विशुद्धिस्थानकोमा रहीने संक्लेशस्थानकोमा जायछे, आ ममाणे देशोनपूर्वकोटि कालमधी अन्तर्मुहर्ते अन्नमहल प्रमत्तभाव अने अभमसभापर्नु परावर्तन थयाज करेछे माटे प्रमत्तसंपतभाव उत्कपंथी अन्तर्मुहर्तकाल रहेछे अने अप्रमत्तसंयतथाव पण उत्कर्षयी अन्तर्मुहुनकाल रहेछे, अधिक काल रहेता नथी. आ प्रमाणे एकजीयापेक्षया जाणवू, हवे अनेकजीवापेक्षया प्रमत्तसंपतगुणस्थान अने अममन संयत गुणस्थान ए देउ सदाकाल विद्यमान होयछे, ६ थी १४ सुधोना नवे गुणस्थानो मनुष्यगतिमांज होयछे प्रमत्तसंपतगणमानवाळा जोबो मोरित्व भगाग अपने अप्रमत्तसंपनगुणस्थानवाला जीवो कोटिशतपृथवत्वप्रमाण सदाकाल होत्राथी छठा अने सातमा ए बेउ शुणस्थाननो अनादि अनन्तकाल जाणवो. (८ थी ११मुंउपशमणिगत) आठमु अपूर्वकरणगुणस्थान, नवमुं अनिवृत्तिवादर संपराय गुणस्थान अने दशमुमुक्ष्मसंपरायगुणस्थान ए अणे गुणस्थानो उपशमश्रेणिमां तथा अपकणिमां एम बेउमा होय छ, पण अहीं उपशमणिगत लेवाना छे, अने अगीआरभु उपशान्तमोहवीतरागछस्थगुणस्थान उपशमश्रेणिमांज होय छे, उपशमश्रेणिना ए चारे पैकीना दरेक गुणस्थानको जयन्ययी एक समयकाल रहे छे, ते आप्रमाणे-कोइक जीव उपशमश्रेणिमां चडतो अथवा श्रेणियी उतरतो आठ, अपूर्वकरणगुणस्थान एक समय अनुभवी मरण पामे अने अनुत्तरविमानोमा अविरतसम्यग्दृष्टिपणे उत्पन्न थाय, तेथी एक समयज काल आउमा गुणस्थाननो जाणवी, तेज प्रमाणे कोइक जीव चढता उतरता नवर्मु गुणस्थान पामो समयमात्र रही तथा कोइक जीव चढता उतरता दशम गुणस्थान पामी समयमात्र रही तथा कोइक जीव अगीआर गुणस्थान पामी समयमात्र रही मरण पामी अनुत्तरविमानोर्मा अविरतसम्पन्हष्टिपणे उत्पन थाय तो एक समय मात्र काल चारे गुणस्थानको पैकी दरेक गुणस्थाननो जाणवो.अने उत्कर्षथी ए चारे गुणस्थानकोनो प्रत्येक काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण छ, अन्तर्मुहूर्त बाद बीर्जु गुणस्थान पामे अथवा मरण पामे माटे अन्तर्मुहूर्तकाल जाणवो, ए चारेनो समुदितकालपण अन्नमुहत छे पण ने अन्नमुहर्न मोटुं अने प्रत्येकनु अन्तर्मुह न्हाना प्रमा
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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