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________________ ". (30) || श्री लोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः ॥ (सा० २३८) (५४०) वीतरागछद्मस्थगुणस्थान तथा सात अप्रमत्तसंगतगुणस्थान अने छ प्रम त्तसंगत गुणस्थान एगुणस्थानवाळा जीवो सर्वार्थ सिद्ध महा विमानमां ऋजुगनिए उत्पन्न याय के जेथी तेओने सातगजनी स्पर्शना थायले, अने क्षपक श्रेण्या रूढ अपूर्वकरण विगेरे गुणस्थानना जीवोते ते गुणस्थानोमां काळ करता नथी तेम मारणान्तिकसम्मुयात पण करता नयी तेथी तेओने लोकना असंरूपातमा भागमात्रनीज स्पर्शना घटे, अधिकस्पर्शना होती नथी. अर्थात् उपशमश्रेणिनी अपेक्षाये सातराजनी स्पर्शना उपर कथा प्रमाणे घटेले. शंका - मनुष्यभवना आयुष्यनो क्षय भये अने परभव (देव)ना आयुष्यनो उदय थमेज मरण पानी परलोकगमन थायले. अने ते बखते ( देवभवायुष्यना उदयसमये ) तो अविरतपणुंज होय अपूर्वकरण विगेरे गुणस्थानो होता नथी तो शीरी अपूर्वकरणादिनी सातराजनी स्पर्शना घटी के ? उत्तरए दोपपत्ति नयी कारण अयो मरण पामी परलोकमां जता जीवनी वे प्रकारनी गति होय. १ एक कन्द्रकगति २ बीजी इलिकागति, कन्दुक (दडो) नी माफक उतीगति ते कन्दुकगति एटले के जेम कन्दुक (दहो) उछाल्यो छनो पोताना देशीवडे पिण्डित थयो छतो ( सर्वप्रदेशयुक्त ) उपर जायले, वेम कोड़क जीव पण परभargrat उदय थये परलोकमां जतो पोताना सर्व प्रदेशाने एकत्रपिंड करीने (सर्व प्रदेशोसहित) गति करेछे अने इलिका ( इयल) नी जेवी गति ने इलिकागनि काय एटले जेम इयल पुंछडाभागे पूर्वस्थानने नहि छोड़ती मुखना भागे करी आगळना स्थान सुधी पोतानुं शरीर फेलावी ते स्थाननो स्पर्शकरी न्यारवाद पुंछदानी भाग संहार करें (खेची लेछे) एज प्रमाणे कोड़क जीव पण आयुष्यना अन्तसमये केला आत्मप्रदेशोन डे पोताना पूर्वस्थलने नहि छोडतो केटलाक प्रदेशोये आगलाभवना उत्पत्ति स्थाननो स्पर्श करी परभवायुच्यना प्रथमसमये शरीरनो परित्याग करेछे. आ वे गतिओ पैकी इलिकागतिनी अपेक्षाये अपकरणादिनी सातराज स्पर्शनानी व्याघात यतो नथी. कन्दुकगतिमां परभवायुष्यनो उदयज परभवमां लड़ जतो होवाथी ते जवानासमये अविरतसम्यग्दृष्टिजीव होय. शंकाग्रन्थान्तरमा प्रमत्तसंयत अप्रमत्तसंयत तथा अपूर्वकरणादि गुणस्थानवाला जीवो लोकनो असंख्यातमो भाग स्पर्श कर्यो ले ए प्रमाणे कथन होवाथी सालगजनी स्पर्शना घटी शके ? उत्तर- "
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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