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________________ (५४४) ॥ गुणस्थानबार गुणस्थानेषु द्रव्यप्रमाणविचारः ॥ द्वार कल्पना साची तो ठरत के जो श्रेणिना सर्व समयोमा जीवोनो प्रवेश थवानो होता पण ते प्रमाणे तो पनत नथी, परन्तु कोइकोइ समयोमाज प्रवेश पायछ ! आ पण शाथी जाणवू ? तेम शिप्यना मनमां कदाच शंका थाय तो तेनो जवाब नीचे प्रमाणे-अहीं उपशमणि अंगीकारकरनार पर्याप्त गर्भजमनुष्योज होयछे अने तेमां पण चारित्रवत मनुष्योज णि अंगीकार करे छे.बीजा कोड़ होता नयो अने चारित्रधारीजीवो उत्कृष्टयी पण नवहजार कोडसंख्याये होयछे.ते पण सर्वे श्रेणिअंगीकार करता नथी, परन्तु विशिष्ट विशुद्धिवंत जीवोज श्रेणि करे छे, तेथी ए निर्णीत थाय ले के-उपशमश्रेणिनासर्वसमयोमांजीव प्रवेश होतो नथी परन्तु अमुकन समयोमा प्रवेश पायछे, तेमापण अमुफफाले(अमुकसमये) पंदरे पण कमभूमिश्रोमांथइने उन्कर्षथी चोपनज जीवो प्रथेशकरता होय अधिक न होय तेथी ए निर्णयज छे के. अणिना संपूर्णकालमा थइने संख्यानाज होयछे, नेमां पण पूर्वाचार्योना वचनयो संख्याता ते सेंकडो संख्यामां लेचा हजारो रूप संख्याता लेवा नहि, भगम सालियो गीगा (८-९-१० गुणस्थानति) क्षोणमोही (१२ मा गुणस्थानति) अयोगि (१४ मा गुणस्थानवति) एटले के (८-९-१० -१२-१४) आ पांचे गुणस्थानवर्ति जीवो पण अध्रुव होनाथी कोइकालविशेष न पण होय कदाचित्कालविशेषे होयतो प्रत्येके जघन्यथो एक वे होय अने उत्कर्पयो एक सायमां मयेशनी अपेक्षाये १०८ पण संभवे अर्थात् उत्कर्षयी एफसोआठ जोवो सपक ( ८-९-१०) भावमां, सीणमोह (१२ मा) मां अने अयोगिकेवलि (१४ मा) गुणस्थानमा एफसमयमा प्रवेश करेछे. तथा अन्नहर्तममाण क्षपफश्रेणिना संपूर्णकालमां पंदरे कर्ममृमिना सर्वक्षेत्रमा क्षपकश्रेणिमा प्रवेशकरता भिन्न भिन्न जीवोनी सर्वेनी गणत्री करीये तोपण उत्कर्षथी शतपृथक्त्वसंख्याये होय छे. अधिक होय नहि,आस्थले पण शंका समाधान उपशमश्रेणिगतजीवोनो माफक जाणवू, अयोगिकेवलि भगवन्तो पण उत्कर्षयी शतपृथक्स्व जाणवा. ___ सयोगिकेवलि (१३ मा गुणस्थानति) जीवो सदा विधमानहोवाथी हमेशां कोटिपृथक्त्व संख्याये होयछे, जघन्यपदे पण कोटिपृयक्त्व प्रमाण होयछे, अने उत्कृष्टपदे पण फोटिपृथक्त्वममाण होयछे, मात्र जयन्यपद करतां उत्कृष्टपदा कोटिपृथक्त्व मोटाप्रमाणनु ले, एटले वीश तीर्थकरभगवंतना जघन्पकाले क्रोड केवलिभगवंतो विचरता लाभे अने उत्कृष्टकाले १७० तीर्थकरभगवतो विच. रता होय त्यारे नवक्रोड केलिभगवंतो विचरता लाभे, ही सिद्धान्तपरिभाषाये
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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