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३१) ॥ श्रीलोकपकाशे तृतीयः सर्गः ॥ सा. २३६ (५२३) + हद्विचरमक्षणावध्येकयुक् शतम् ॥ ४०॥ सत्तायां नवनवतिः,
क्षीणमोहान्तिमक्षणे। चतुर्दशक्षयादत्र, पञ्चाशीतिः सयोगिनि ।। ४१॥ ततोऽयोगिद्विचरमक्षणे द्वासप्ततिक्षयः । अयोगिनः क्षणेऽन्त्ये च, शेषत्रयोदशक्षयः ॥ ४२ ॥ अत्र भायं" आवरणकूखयसमए, निच्छड़यनयस्स केवलुप्पत्ती । तत्तोडगंतरसमए, क्वहारो केवल भणइ ॥ ४३ ॥” ( आवरणक्षयसमये नैश्चयिकनयस्य केवलोत्पत्तिः । ततोऽनन्तरसमये व्यव. हारः केवलं भणति) (सा० २३६) क्षपकश्रेणिस्थापना । (इति छादशं)॥ १२ ॥
अन्तर्मुहर्तसुधी कोधना पण यन्धनादिनो व्यवच्छेद थये छत कोधनु दलीयू समयोन के आधलिकाप्रमाण काले गुणकमे करी संक्रमावती चरमसमये मषं मंकमे करी मानमा संकमाये, पटले बये कोधनी सर्वथा क्षय ययी. इवे मा. गनु पण प्रथम स्थितिरूप बनायु मे प्रथम किट्टीन दलीयु ते पण वेदातु धंदातु समयाधिक आपलिकामात्र शेष थयु', त्यारयाद अनन्तरसमयै मानघोजीस्थितिमा रहेलु मोजी किद्भिन दलीयु संषीने प्रथमस्पिति बनाये अने वेदे, ते पाचनसमथाधिक पक आवलिकाप्रमाण शेष रहे भ्यांधी, स्यारवाद अनप्लगसमयमा वीजी स्थितिमा रहेलं त्रीजी किट्टीन दलीयु रोचीने प्रथमस्थिति यनावे अने वैदे, ते पण त्यांसुधी जाणवू के यावत् समयाधिक एक आवलिका शेष रहे, तेज ममये मानना बन्ध उदय उवोरणानी समकाले व्यवछ पाय अने ते पाते धीजु धधु मायामां प्रक्षेप करेल होवाथी मामनु लस्कर्म पण समयोन आलिकानिकमा या प्रमाण हाय छ, स्यारवाद मायान बोजीस्थितिमा रहेलु प्रथम किट्टीन दलीयु वधाने प्रथम स्थिति बनाये अने वेवे, यायत अन्तर्मुहुनसुधी मानना पण बन्धनादिनी व्यवच्छेद थये छते ते [ मान ] नु बलोयुं समयोन घे आपलिकाममाण का करी गुगणसंक्रमबारे मायामां प्रक्षेपे, मायानुं पण प्रघमास्थितिरूप करेलु से बीजीस्थितिमानुप्रथम किट्टीनु दलीयु ते वेवातुं छतुं समयाधिक आषलिकाशेष प्रमाण थयु, पारवाद अनन्तरसमय मायानु बीसी स्थितिमा रहेलु चीजो किट्टीमु दलीयु खेची ने प्रथमस्थिति करे अने वेदे, से पण समयाधिक आषलिका शेष रहे स्थांसुधी जाणवू, स्यारखाप पली अनम्तरसमये मीजी स्थितिमा देलु जीजी क्रिहिन बलीयू पण खे चीने प्रथम स्थिति को अने धे, ते यावत् समयाधि