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________________ (५२२)।गुणस्थानद्वारे द्वादशक्षीणमोहगुणस्थामप्रसंगतः क्षपक श्रेणिमरूपणम् (बार जहा पुरिसो ॥३६॥" (क्षी क्षाकनिधः विभापति गोड्सागरं तोर्वा । अन्तर्मुहर्तमुदधिं तीर्खा स्ताघे यथा पुरुषः ॥) (सा०२३५) गतोऽथ द्वादशेक्षीणकषायाख्ये गुणेऽसुमान । निद्रा च प्रचलो चास्यान्तयेदन्त्यादिमक्षणे ॥ ३७॥ पञ्च ज्ञानावरणानि, चतस्त्रो दर्शनावृतीः । पञ्च विघ्नांश्च क्षणेऽन्त्ये. क्षपयित्वा जिनो भवेत् ॥ ३८ ॥ एवं च ।। अष्टचत्वारिंशदाद्य शतं प्रकृतयोऽत्र याः । सत्तायामभवस्तासु, षट्चत्वारिंशतः क्षयात् ॥ ३९॥ घ्याढयं शतं प्रकृतयोऽवशिष्टा दशमे गुणे । क्षीणमोते किट्टीओ वास्तविकरीते अनन्त छत्तो पण स्थूलमातिभेदनी अपेक्षाये पहेली बीसी अने धीजी ए प्रमाणे पक पक कषायनीत्रण प्रण कल्पवी पटले चारेकषायनी मळीने बार किट्टीओ कल्पायने आ प्रमाणे क्रोधोदये आणि अंगीकार करनारन काणg, ज्या. रे माने श्रेणि अङ्गीकार करे त्यारे उलनाविधिये क्रोधनो क्षय कयै छतेश्रण कषाय ( मान, माया, अने लोभ) नी पूर्वक्रमे मष किट्ठीभी करे छ, भने जो मायाये श्रेणि अंगिकार करे तो क्रोध अने माम बेड कवायो उसलमाविधिये खपान्ये छते माया अने लोभ प बेनी पूर्षक्रमे छ किट्टीओ करेछे, असे जो लोभे आणि अंगीकार करे तो उबलनाधिधिये शोध मान मने माया प प्रणने पाये को पकला लोभनी प्रण किट्टीओ करे . आ प्रमाणे किट्टीकरवानो विधि माणधो. किट्टीकरणाद्धा पूर्ण यये छते कोधे अणि अंगीकार करी होय सो कोषनु बीजी स्थितिमा रहेलु म्यम किट्टीन दलीयु मेचीमे प्रथम स्पिनि केप करे अने देते, ते यावत् समयाधिक एक आपलिकामा शेष रहे स्पांसुधी, त्यारवाद अमम्मरसमये बीशी स्थितिमा रहेलु बीजी किट्टीन दलीयु खेंचोने प्रथम स्थिति बनाये अने वेके, ते पण यावत् समयाधिक आवलिकामात्र शेष रहे यासुधी, स्पारबाट पढ़ी अमन्तरसम्ये वोजीस्थितिमा रहेलु त्रीजी किट्टोनु वलीयु संबीने प्रथमस्थिति चमारे अने घेदे यावत्, समयाधिक आ. पलिकामात्र शेष रहे यासुधी, थलो मात्रणे किट्टीवेदमाखाओमा उपरनो स्थितिनु बलीयु प्रतिसमय असंमन्येयगुणदि स्वरूपवाळा गुणसंकमे करोम संस्खलनमाना प्रक्षेप करे, अहीं हष त्रीजी किट्टीवेदनावाना चरमसमये संग्व. लनकोधना यक्ष उदय उदीरणाओनो समकाले व्यवच्छेद चाय छे, अने कीधनु सर्व सत्ताकर्म पण मानमां मांखयुं (संक्रमाव्यु) होषाधी समयन्यून घे मावलिकामा प्रमाण मुकीने बोलुं मग्री, स्यारबाद अनन्तरमपये माननु बीजी स्थितिमा रहे प्रथमकिट्टीन बलीयु कोचीने प्रथमस्थिति करें अने वेदे, यात्
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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