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________________ (५२०)। गुणस्थानद्वारे खाद शक्षीणमोहगुणस्थानमसंगतः क्षपकश्रेणिप्ररूपणम् | [द्वार === = स्थावरयुगल ते स्थावर अने सूक्ष्म नाम कर्म ए प्रमाणे जाणवृं, " जेम अर्धा वा लीनाखेला इन्धन (लाकडा) जेणे एवो अग्नि बीजां काटने पामीने नेने प्रथम चाळी नाते नेम क्षपक जीव पण अहिं ( ८ प्रकृतियोना क्षयनी । वचमज पूर्वोक बोजी १६ प्रकृतियोनो क्षय करे हे ||३०|| अने त्यारबाद क्षय करतां बाकी रहेला आठ पायोनो क्षय करी अनुक्रमे नपुंसकवेद- खोवेद - हास्यादि ६ - अने पुरुषवेदनो क्षय करे के ||११||ए सिद्धान्तमत को अने केलाएक आचार्य तो एम कहे छे के “१६ प्रकृतियोनेज प्रथम खपावना मांडे ते दरम्यानमां (बच्चे ) फक्त आठ पायोने खपाये अने त्यास्वाद ( अवशिष्ट ) १६ प्रकृतियोनो क्षय करे " ए प्रमाणे कर्मग्रन्धनी वृत्तिमां कथुं छे. मोहनीयने स्थितिघातादिव तेस्तु अने तेबोरीते खपावे के जेवी अनि वृत्तिकरणमा प्रथमलमये पल्योपमना असंख्यानमा भाग जेटली स्थितिषालु ते थाय छे, स्थास्वाद अनिवृतिकरणकाळना संख्यात भागों गये छते उचलना सं क्रमणे उशन कराती स्त्यानद्धित्रिक ३ । स्त्यानधि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला नरकगति ४, नरकानुपूर्वी ५ तिर्यग्गति ६ तिर्यगानुपूर्वी ७ जातिखष्क ११ ( पकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, अने चतुरिन्द्रियजाति ) स्थावर १२ आतप १३ उपत १४ सूक्ष्म १५ साधारण १६ प सोळ प्रकृतिओनी स्थिति पण प स्योपमना असंख्यानमा भागप्रमाण यह पछी ते सोळे प्रकृतिओ दरेकसमये समये बंधाती प्रकृतिश्री मां गुणसंक्रमे प्रक्षेप कराती प्रक्षेप कराती संपूर्ण क्षय पामे ये अह पहेलेशी खपायाने आरंमेलुं कषायाष्टक हजुषी क्षय पाम्यु नथी, मात्र तेनी समज अ सोळ प्रकृतिओ खपावी ! त्यारबार हये अम्ल मुंइतकाले ते कायाकने संपूर्ण खपाये पटले के अनिवृतिकरणतो एक संख्यातमो भाग बाकी रथे पूर्वोक सोळे प्रकृतिओ संपूर्ण क्षय थइ, अने त्यारबाद कषायाष्टक पण संपूर्ण क्षय पाये छे, चीजा भाषायों को में सोळप्रकृतिपाषवामी प्रथमज मात करे अने वचगाले कपायाष्टक खपावे अने पछी शेष सो प्रकृतिओमी अपणा पूरी करें, स्यारवाद अन्तर्मुहूर्तकाले नव नो. कषाय भने चार संचलन कषायनुं अन्तकरण करी उपरनी स्थिति नपुंसक वेदन वली उलनविधिये खपाधना शरुआत करे, अन्तर्मुहूर्तकाले ते मपुंसकयेदर्नु दलीयूं पस्योपसना असंख्यातमा भागप्रमाण स्थितित्राखुं ययुं त्यारथी मांडीने बंधाती प्रकृतिओमां गुणसंक्रमे करी ने दली प्रक्षेप करे आ प्रमाणे प्रक्षेप करता करता अन्तर्मुहूर्त से संपूर्ण क्षय पाम्यु हवे जो नपुंसक वेदे श्रेणिये चद्रवो होय तो नीचेनी स्थितिनुं ( आपलिका मात्र ) दलीयुं भोगखीने क्षय करे अने अन्य वेदे श्रेणि आरंभी होयतो ते आमलिकाममा दलीयुं छे अने ते हितकसकमे वेदात प्रकृतिओमां संक्रमावे प्रमाणे संपूर्ण नपुंसकयेव
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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