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२९९) ॥ श्रीलोकमकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २२१) (४७५) निराहाराः शरीरिणः । आहारका असंख्येयगुणास्तेभ्यः प्र. कीर्तिताः ॥ ११ ॥ (नराभेदेन बाहानाहारहानिचारः) ____ अर्थ-वली व्यवहारनगनी अपेक्षाए एक वक्रा गतिमा बन्ने समये जीव आहारफज होप छे. ॥७॥ ते आ प्रमाणे प्रथम समये आ जीव शरीरनो स्याग करे, अने ते त्याग समये ज पुनः ते शरीरने योग्य केटलाफ पुदगलो जीवना व्यापारथी लोमाधारवडे जीवना सम्बन्धमा आवे, अने जीवना योगयी औदारिफादि (१ शरीरना) पुद्गलोर्नु जे ग्रहण करवं ते आहार कहेवाय छे ॥८ ॥
आ प्रमाणे अहीं एक वका गतिमा पहेले समये आहार विचार्यों एज प्रमाणे सर्व शिवका विगेरे गतिओमां पण पहेले क्षणे आहार जाणवो ॥१०॥ वली बीजे समये ने जीव ज्यारे उत्पत्ति स्थाना आवी पहोचे ते समये पण ते धरने योग्य परमाणुओनो यथायोग्य ( देवनारकभत्रमा क्रियनो मनु
पतियचभवमा औदारिकनो इत्यादि यथायोग्य ) आहार करें. || ११ ॥ इथे ट्रिक्कागति त्रण समयनी छे त्यां मध्यनो समय आहार विनानो छे, अने पूर्व कह्या प्रमाणे पहला अने छल्ला समयमा आहार ग्रहण होय छे. ॥१२॥ ए रीते चार समयनी विवक्रागतिर्मा, अने पांच समपनी चतुर्वका. गतिमां तेओना मध्य समयो आहार विनाना अने पहेला छेल्ला समयो माहारवाळा जाणवा ।। १३ ।। माटे कधु छे के-" एफवक्रा-द्विवक्रा-त्रिवत्रा अने चतुर्वक्रागतिमा (अनुक्रमे) बीजादिक ( चीजा-बोजा चोया अने पांचमा ) समयमां परभवनो आहार होय है, अने ( अनुक्रमे ) विवादितियोमा एक चे अने. पण समय आहार विनाना होय छे." ॥ १४ ॥ बळी निश्चय नयमने नो आवता भवना ( परभवना) पूर्वसमयमां[ प्रथम समयमा ] पूर्वभवना शरीरनी साथे जीवनो सम्बन्ध नहिं होयाथी, अने परभवना शरीग्नी इजो माप्ति नहि थवाथी ते समये आहार होतो नथी ॥ १५ ॥ अने बीजे समये पोतान उत्पत्ति म्यान पामीने आहार फरे ले माटे एक वकागतिमां पण ? समय अनाहारी होय छे.
१६ ॥ स्यारयाद पीजी (डिवत्रा)मां ये समय अनाहार, त्रीनो (विका)मां पण समय, अने चौथी (चतुर्वका)मां पण चार समय अनाहार होय छे, कारणक सर्व वजागतियोमा छोटो एक समय आहार महिल होप छे. ॥१७ । नेथी व्यवहार नये उत्कृष्टयी त्रण समय अने निश्चयनये ( उलएपी ) चार समय अनाहाग्ना कहेला छे ॥ १८ ॥ सामान्यतः निराहारी जीवो सर्वथी अल्प छे. अने आहा