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________________ एटले क्रियाने मानता ज नथी अने परमप्रमावसंपन्न श्री जैनेन्द्रदर्शन शानयुक्त क्रियाथी मुक्ति माने छे. पर्नु रहस्य ए छे के-ज्यारे प्रत्येक ज्ञानमा अने क्रियामा मुक्ति पमाडवार्नु देशधी सामर्थ्य छे त्यारे संपूर्ण सामर्थ्य तो उभयमा ज रहेलु छे. जेम गगडाने चलावबार्नु सामर्थ्य प्रत्येक पैडामा देशथी छे अने बनेमां संपूर्ण रहेलुं छे, तेम ज्ञानक्रियामां पण समजवू. बळी प पण ध्यान म्हार न ज हो, जोइए के ज्ञानविनानी क्रिया अंधजेवी अने क्रियाविनानुं ज्ञान पंगु( पांगळो माणस ) ना जेवू छे. जेम वनमा सकगेला दावानलना प्रसंगे भलेने अंधमा चालवानी शक्ति होय पण ज्यांसुधी पांगळाने खभे बेसाड़ी वेना बतावेला मार्गे अंधजन न चाले त्यांमुधी दावानलना दुःख थी न बचे, तेम ज्ञानक्रिया उभयनु आराधन न करे तो आ जीव संसारदावानलथी शुं बचे खरो के ? न ज यचे. पूर्वे कहेल ज्ञान-सर्वानुयोगमय पंचमांग श्री भगवतीसूत्र तथा श्री नंदीसूप्राविमा पांच प्रकारचें कहेल छे. युक्ति पण एम ज जाहेर करे छ के-जेम दुनियाना प्रकाशक सूर्यादि पांच छे तेम ज्ञान पण पांच का छे; कारण के ते पण प्रकाशक ज छे. प्रकाश अने ज्ञान ए वे समान अर्थवाळा शब्दो छ. माटे न नाणं फ्यासयं० इत्यादि पूर्वधर भगवंतोए का छे. आ पांचे ज्ञानमा स्वपरस्वल्पने जणावनार श्रुतज्ञान ज छ. जेमा द्वादशांगी मुख्य गणाय छे. ते अंगरचनाना संबंधां एम समजवू के जेम एक पुरुष वृक्ष ऊपर चढी फलो भेगा करी नीचे नांखे, ते फूलोने माळी वनमा झीली माळा बनावे हे तेम पूज्यपाद सर्वज्ञ प्रभु श्री तीर्थकर महाराजाए केवळज्ञानरूप वृक्षउपर चढी अनेकार्थरहस्यगर्भित सकलजीवोपकारिणी सुधासमान देशनाद्वारा कहेला वचनोरूपी पुष्पोन वीणीने यथार्थ स्वरूपे बीजबुद्धिना निधान पूज्य श्री गणधरभगवंतोष आचारांगादि सूत्रोरूपी माळा गुंथी. माटे ज कल्यु के–अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथति गणहरा निउणं॥ श्रुतफेवळी आदि स्थविर भगवंतोए अंगोन स्पष्टीकरण करचा उपांगादिनी रचना करी. भा प्रसंगे ए. पण ध्यान बहार न ज होवु जोइए के-दृधमा जेम घी रहेलु छे, तेने विचक्षण पुरुष जुईं करी शके छ एम अंगसूत्रो दृध जेया अने नियुक्तिभाष्य-चूर्णी धी जेवा समाजचा. चतुर्दशपूर्वघर श्री मद्रबाहुम्वामी आदि महापुरुषोग ते सूत्रनी साथे अभिन्न स्वरूपे रहेला नियुक्त्यादिने जुदा गोठव्या, एम सर्वानुयोगमय पंचमांग श्री विवाहप्रज्ञाप्तिसूत्रमा कहेल मुत्तस्थो खलु पल्मो०
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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