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________________ ॥ अष्टसु ज्ञानेषु विषयादीनामेकादशानां वाराणो यन्त्रकम् ।। धान तथा अज्ञान३ द्रव्यथी क्षेत्रथी काळ्थी __ मतिज्ञान आदेशथी सवंद्रव्य आदेशथी लोकालोक आदेशथी प्रणे काळ सर्व अभिलाय तज्ञान अब्यो ( उपयोगथी असंख्यकाळ ) हशे ते ने जाणे-ति शेषः ।। भाष जाणे पण अनंतकाळ पहेलो था पछी आ पदार्थ केषा स्वरूपं हती के तशानी सामान्यथी प्रणे काळ आणे पण उपयोग पूर्वक असंख्य काळना अबधिमान जध- भाषा तंजस बच्चेना पुद्रल| ज०-अंगुलनो अमंख्यातमी भाग | जब आघालीनो असंगातमा भाग भून-भविष्य "| उ.-सर्व पुद्गलो. उ-असंख्य लोकाकाश (शनिथी)| उ०-प्रसंयकाळसक भूत भविष्य ऊच-ज्योतिषना उपरितल भाग सुची मनः पर्यष - मनरूप परिणमैल इच्छा. जघ-पल्यासम्न्यग्र गम भून भविष्यनी अधः-अधोग्राम तिर्यक् २। अंगुलाधिक पुष्कराय सुधी. |. केवळज्ञान! कपि-अपि सर्व प्रख्य सर्वक्षेत्र लोफालांक प्रणे काळ संपूर्ण ॥ श्रीलोकमकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २११) (४) - मतिअज्ञान स्वविषयगत द्रव्य म्यविषयगत क्षेत्र स्वविषयगत काळ (६) धृत अशान | स्वविषयगत अभिलायतव्य विभङ्गमान रूपविषयगत पुद्गलद्रव्य (GDR) (८)
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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