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________________ [द्वार __॥ नानदारविचारयन्त्रकाणि ॥ ॥ मनःपर्यायज्ञानना २ भेदो ।। ? ऋजुमति मनःपर्याय । २ विपुलमनि मनःपर्याय ॥ अवधिज्ञानमा क्षेत्र--काळनो संवेध ॥ (श्लो० ९०६ ) क्षेत्रथो देखमार काळथी देख? अगल असंख्येय भागमा १ आवलिनो असंख्येय भागकाळ देखे ___ अयगाद द्रव्य देखनार (वृत्तिद्रव्य देखे) २ अङ्गुल संख्येयभाग . २ आवलि संग्ख्येय भाग देखे ३ एक अगुल देखनार ३ किंचिन्यून आवलिका देखें ५ अङ्गुल पृथक्त्व , ४ एक आवलिका , ५ एक हस्त दग्वनार ने एक जन्तर्ग ६ एक गाउ ६ किंचित्न्यून एक दिवस , " ७ एक योजन , ७ दिनपृथक्व ८ पश्चीश योजन , ८ किंचितवन पंदर दिवस ,, ९ भरत क्षेत्र २ संपूर्ण पंदर दिवस १० जंगीप , १० एक साधिक मासा ११ मनुष्य क्षेत्र , ११ एक वर्ष १२ रुचक द्वीप ,, १२ वर्षपृथक्त्व १३ संख्येयद्वीप समुद्र , १३ (१००० वर्ष उपरांतनो) संख्येकाळ अने असंख्येकाळ पण , १४ असंख्यद्वीप समुद्र ,, । १४ असंग्व्य काळ चक्र , ॥ द्रव्यादि वृद्धिनो संवैधयन्त्र ॥ ( उलो. ९२०) कामवृद्धिा --- | द्रश्य, क्षेत्र, भाव(पर्याय)नीद्धि निश्चय, क्षेवदिए-दृव्य अने भाव(पर्याय)नीति अवश्य, अने कालद्धि विकल्प द्रव्यदृद्धिए.- भाव(पर्याय यदि निश्चयथी, क्षेत्र अने कालद्धिनी भजना ५ द्रव्य, क्षेत्र अने काल वृद्धिनी भजना जाणवी पनि
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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