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________________ (४१८१ ज्ञानद्वारे अवधिज्ञानविषयविचारः ॥ आर वृद्धिनी भजना जाणवी. कारणके काळ करतां क्षेत्र सूक्ष्म के माटे ॥ ९२० ॥ तथा क्षेत्रनी वृद्धिधी द्रव्य अने पर्यायनी अवश्य वृद्धि थाय. अहिं वाकीनुं विशेष वर्णनकादिकथ जाण ॥१२१॥ अमृत् (अरूपी) एवा क्षेत्र अने काळ a safai विषय नहि होवाथी कला क्षेत्रकाळमां वर्तनारा द्रव्यमां ते वन्नेनी ( क्षेत्र - काळनी ) लक्षणा करवी. ॥ ९२२ ॥ ए प्रमाणे अवधिज्ञाननो विषय को. -- १- २-३ एक प्रमाणाङ्गुल जेटली श्रेणिप्रमाण आकाश खण्डना दरेक ममये एक एक आकाशप्रदेशनो अपहार करतां असंख्य उत्सर्पिणी अवसर्पिणीओ वीति जाय. माटे काळ करतां आकाश सूक्ष्म छे. तेथी घणुं क्षेत्र बचे तो ज काळनी वृद्धि थाय अन्यथा नहिं माटे भजना भने वध्य क्षेत्र करतां पण सूक्ष्म छे, कारण एक आकाशप्रदेशमां अनन्तपरमाणु तथा अनन्तप्रादेशिक स्कन्धांनी अवगाहना थाय छे। अने द्रव्यथी पण पर्याय घणा सूक्ष्म है. कारण एक परमाणुरूप मध्यमांप अपनी म हाथ से मारे क्षेत्रमां द्रच्यवृद्धि तथा पर्यायनी वृद्धि निश्चयथी थाय छे, द्रव्यवृद्धियां काळवृद्धि तथा क्षेत्रवृद्धिनी भजना जाणधों, पण पर्यायवृद्धि निश्वयथो जाणची पर्यायवृद्धिमां काळवृद्धि, क्षेत्रवृद्धि तथा श्रन्यवृद्धि त्रणेनी भजना समजत्रो आज कारणने लड़ने क्षेत्री अंगुलनी असंख्यातमो भाग अने काळ्थी आघलिकानां असंख्यानमो भाग जं जघन्य अवधिविषय कधी तेमां आवष्टिकाना असंख्यातमा भागमां जेटला समय छे, ते करतां अंगुलना असंख्यातमा भागमां आकाशप्रदेशां असंख्यात गुणा है, एज प्रमाणे सर्व स्थळे काळ करतां क्षेत्र असंख्यात गणुं समजबु यही अवधिज्ञानता जघन्य विषयक्षेत्र प्रमाण माटे जे सिमाहारक पनक लोधी, मां केंटलाको "पहेलो घनरसमय बीजो सूचि समय अते बीजो उत्पत्तिसमय समयमां ऋजुगतिथी आवेल होवाथी आहारक ज माटे ते लेवी अने ते जघन्य अवगाहना बाळो पण छे." नेम हे छे, पण नं अयुक्त छे, कारण त्रिसमयाहारक प एनकनुं विशेषण हे अने प्रतर तथा सूचि समयों तो मत्स्यभवना छे माटे पनकभत्रमा उत्पत्तिथो श्रीजी समय लेवी तेज व्याजत्री है, अवधिज्ञानना सम्बन्धमां चाँद द्वारोनुं वर्णन आवश्यकवृत्ति आदियो जाण. " शक्याथैवाधे शक्यसम्बन्धी लक्षणा जे अर्थमा जे पनी शक्ति होय ते अर्थ ते पवनुं शक्य कहेवाय ते शकयार्थनो बाघ छतां शक्यनों मेंबन्ध ते लक्षणा कद्देवाय जेम गङ्गायां घोषः " ठेकाणं गङ्गापनुं शक्य गङ्गा नदी प्रवाह तेमां घीष पटले गायना नेहडानां श्राध है ( न संभवी शके) י F 1
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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