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२६९) || श्रीलोकपकाशे तृतीयः सर्गः ॥ सा० १७७) (३९७) भाज्य अंशो बीजा जीवोमा वृद्धि पामेला होय ते पर्यायसमास नामथी कहला छ ।। ८२३ ॥ आचारांगवृत्तिमां का के के-बीर भगवाने जीवनो जे आ सर्व जघन्य उपयोग देखेलो छे ने सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्तजीवाने होय छ एम जाणवु. ।। ८२४ ॥ ते सर्व जघन्यांशथी मारंभीने जीवांना ज्ञाननी वृद्धि जिनेश्वरे लब्धिनिमित्तक एवां काय-इन्द्रिय-वचन-मन-अने दृष्टि रूप करणोवडे (जेम जेम काय इन्द्रियादि वश्तां जाय छे. तेम तेम ज्ञाननी पण दृद्धि थती जाय छे.) देखेली छे ।। ८२५ ॥ तथा लब्ध्यक्षरोमांना कोइपण एक अक्षरनुं ज्ञान ते अक्षरज्ञान, अने तेवा घणा अक्षरनुं ज्ञान ते अक्षरसमास श्रुतज्ञान कहेवाय छ ।। ८२६ ॥ आचारांगादि शास्त्रोमां जेरा प्रकार पदोनुं अदारहजारादि निश्चय प्रमाण छ तेवा प्रकारना एक पदनुं ज्ञान ते *पदश्रुत ज्ञान छे ॥८२७|| अने तेवां वे ऋण इत्यादि पदोनुं ज्ञान ने पदसमास श्रुतज्ञान, ए प्रमाणे संघात अने मतिपत्ति वगेरेमा सर्वत्र एज पढ़तिए समासनो अर्थ विचारवी. ॥८२८॥ गति अने इन्द्रियादि ६२ द्वारोनो एक देश विभाग गति वगैरे अने तेनो पण एक विभाग देवगति(वगेरे)तेमां मार्गणा1८२९॥जीवादि पदार्थोनी मार्गणा(विचारणा)अवताग य ते आ संघात श्रुत कहेवाय छ,अने चेत्रण आदि मति वगैरेना अवयवमां मार्गणा ( जीवादि पदार्थ अवनारवान ज्ञान ) ते संघातसमास श्रुत कहेवाय. ॥८२९ ॥ तथा संपूर्ण मत्यादि (मूळ ) मार्गणामां जीवादि पदार्थनो जे अवतार करत्रो ने प्रतिपत्ति श्रुत वर्तमान काळे जीवाभिगम मूत्रमा देखाय छै ।।८३०॥ सत्यदमरूपणादि द्वार ( सत्पदमरूपणता-द्रव्यप्रमाण-क्षेत्र-स्पर्शनादि ९ द्वार) ते अनुयोग कहेवाय, ।। ८३१ ॥ अने प्राभृतनी अंदर रहेलो अधिकार ते प्रामृत
- - - - - - - - - -- - __* अहो विभक्त्पन्ने पदम् ' इत्यादि लक्षणवार्छ पद लेषा, नथी परन्तु पारिभाषिक ५१.८८६,८४० पकाधन कोड आटलाख छाशी हजार आठसो ने चालीस श्लोक अने अठाधीश अक्षरे एक पक्ष थाय, केटलेक स्थळे 'भीपलब्धिः पदम्' ला प्रमाणे पदोन लेक्षण यताव्यु छ, नेवा १८००० पदोयालु आचागंग ,. आगळना अङ्गोमा मेथी बमाणु बम' प्रमाण पटलेक मृयगडांगमा ३६००० पदो ठाणांगमा ७२७०० पदो घिगरे अनीआर अङ्गाना तथा चौद पूर्वना पद प्रमाणन यन्त्र नीचे प्रमाणे.
१ श्री जीवाभिगम सूत्रमा हरेक अध्ययन प्रनिपत्तिना रूपमा गोठवेला छ. कारण के सेमां दरेक जीव भेदमां उपयोग-मन्त्रिय-लेश्या-ममुदधानःदिशिआहार इत्यादि अनेकद्वार उतारेला छे. तेम आ ट्यलोकमां पण था सर्गयो प्रतिपत्सिना रूपमांज सर्यद्वारो जीवभवमा जतायी छ:
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