________________
(३४८) ॥ मिथ्याष्टिवाराभिनिवे मिथ्यालये गोष्ठामाहिलस्वरूपम ॥ द्वार -- . -...-. . २ फल्गुरक्षित (आयरक्षिनधिमहाराजामा लघुबन्धो. ३ विन्ध्य नामना. ४ गोष्ठामाहिल (जे आवायधीना मामा हता ) विन्ध्य माधु महाबुद्धिमान होबायो अनुक्रमे श्रेणि {परिपाटि)थी मृत्रवाचना लेता खिन्न धाय छ. श्रीजा षाचनाचार्य माटे प्रार्थना करे छ, तेमने दुर्वलकापुस्पमित्र याचनाचाय तरीके सोप्या, कटलाक दिवस याद विन्ध्य साधुने वाचना आपी, श्रीगुरुमै प्रार्थना करे छ, भगवन ! वाचना आपषामां मागथो धाकीनं श्रुत गणानु नथी, पहेला संवन्धिषर्गने त्यां जवाथी भूली गयो ? अने हवे जो न गf तो सर्व धृत विस्मरण थशे, गुरुमहाराजाप चिम्नव्यु. के वृहस्पनिममान धुद्धि घाळा मिन्य स्मरणकरनार आमने जो विस्मरण थाय छे ते श्रीजा पुरुयोनी गणतरीज शी ! अतिशय भुनोपयोगथी भावि शिष्योनी खुद्धिमन्दतान स्वरूप जाणी मुख्यताप चारे अनयोगांने जवा जदा । मन्त्रीमा ) क्या, कोड दिवस श्रीआचार्य भगवान विहार करता मथुरापुरीना भूनगुफा चैत्यमां पधार्या ,, तेयामां महावित क्षेत्रमा श्रीसीमन्धरस्वामीपांस सौधर्मा धिपति बन्दना करी निगोवर्नु स्वरूप पृटे रहे. श्री भगवते श्रीमुग्वे यथार्थ स्वरूप वर्णव्यु, पळी शन्द्र " भग्नक्षधमा पूछयाधी निगीदम्वरूप कहीं शके तेया ममर्थ कोर छे', मेम पृच्छय, श्रीमीमम्धरम्यामि भगवने आयरक्षितसरि फरमाव्या, साधुओ गोचरी गये छतं अकेन्द्र घरहा माणरूपे परीक्षा फरवा आव्या, पोताना भायुष्यन स्वरूप पृछ, आचार्य भगवंत मा युष्यमा उपयोग आपता शकेन्द्र छो तेम फरमायु, निगोवन यथाय म्पका का, बन्दना करी जबा लाग्या, साधुओ तमोने क्षेबवाधी धर्ममा स्थिर थशे नेम जाणी माधुओ आषता सुधी क्षणवार धोभाधा कयु, अम्पसत्य होबारी साधुओ निया' करशे नेम जणावी बनतिनुं मार फेरववारूप चिन्ह करी शकेन्द्र गया, गोचरोथी साधुओ आन्या, हार न मधमाधी आ तरफ घाने आलो तेम कहेता आचार्य भगवंते शकेन्द्रमा आगमन साथे तमाम सकीकत करी, पळी को अवसरे श्रीआयर क्षिरि भगवान शिष्य मंडल परिवार समेत दशपुरनगर तरफ बिहार कार्या, वामां मथुरापुरीमा पक नास्तिक ( परलोक-जीव-सर्वज्ञ विगेरे इन्दियविषयातिक्रान्त पदार्थ कोइ छ नष्ठि लेम कोनार ) बादी आल्यो. नेणे तमाम नगरलोक षश कयु, कोरपण तेने उसर आपषा समय नथी, मथुराना श्रीसंधे शासनप्रभाषनाना कारणं इ. शपुर नगरमा युगप्रधान श्रीआयरक्षितम्ररि महागजाने मंदेशो मोकला