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________________ (३१८) ॥ वेदवार वेदत्रयस्वरूपलक्षणालाबहुवादिनिरूपणम ॥ द्वार) त्यन्त प्रदीप्त थयेलाने पंडितो नपुंसक कई छे. ।। ५९३ ॥ तथा अभिलाषरूपदेहाकनिरूप-अने नेपथ्यरूप ए प्रमाणे एकेक वेद त्रण प्रण प्रकारनो जाणवो. ॥ ५९४ ॥ पुरुएवेदी सर्वधी अल्प छ, तेथी अनुक्रमे स्वीरेदी संख्यातगुणा छ, नेथी अवेदी [सिद्धादि] अनंतगुणा छ, नेथी नपुंसकवेदी (एकेन्द्रियादि) अनं- . तगुणा छे, अने मेथी सवेदी जीवो विशेषाधिक छे, ।। ५९५ ॥ १ अर्थात् पुश्यने केटलांक निम्ह पुरुषपणानां अने करलांक चित्र स्वीपणामां होय तो ते पुरुषन भक, नीने केटलांक चिन्ह खीपणानां अने कैरलांक चिन्ह पुरुषपणानां होय तो ते बौनपुंसक, अने जैने पुरुषचिन्ह अने श्रीचिन्ह पण न होय ते नपुंसकमात्र कहेवाय. । व्यवेद व्यलि. गनी अपेक्षाप कायो. पमा चिन्ह दित नपुंसक पकन्द्रियथो चमुगिन्द्रिय अने फैटलापक सम्मू०पंचेः पर्यंतना देहपर्याप्त जीवो दोय है. अने केटला. पक सम्मू०पंचे. जीयाने तो पुरुचिन्ह अने सोचिन्ह चतुर्थ कर्मग्रंथ तथा सप्तनिफाभाष्यमां कोल छे. २ पुरुष चिन्हबाळा पुरुषने पण अभिलाषनी अपेक्षाए धणे वेद डोप छ. मेम श्री चिन्हवाळी श्रीने अने अपुंसकने पण अभिलापनी पगवृत्तिए ऋण थंद होय छ. प घात श्री विशेषावश्यकजीमा भष्ट ने कही ऐ. परग्नु लोकव्यवहार लिंगनी अपेक्षापज़ प्रति छ । ३ नाटक वगेरेमा पुरुष छतां श्रीमो पंप पहेयों होयतो ते पुरुष नेपथ्यबी कवाय प रीते नेपथ्यपुरुप अने नेपथ्यनपुं० पण विधारवा. ४ पुनः बीजा प्रन्योमा कप छ के "लीनपणु क्याथी लिंग कहेवाय छ कारण के अतिप्रगट 'पुरुषलिंग रचना छनां पण कदाधित सीलिंग उदय आय छ परम्नु बहारथी म्पर उपलब्ध थतुं नथी, अथवा नपुसलिम उदय आषे छ. तथा श्रीने अतिप्रगट स्थलिंगरचना होते हुने पण कदाचित् पुरुषलिंग अथवा नपुंसकलिंगनो उदय होय छे. प. प्रमाण नपुंसकन पण स्वलिंग रचनाथी उत्तर काळमा थनार कदाचित् पुरुषलिंग अने सीलिंग होय है परन्नु कपिलबत् स्थलिंगरचनाथी भित्र देखाय नहिं' इति अक्षगर्थः ७ पळो नपुंसक १६ प्रकारे रहे ते आ प्रमाणे (१) पंडक स्वभाव श्रीसरखो अने आकार पुरुषनो होय में (अहिं स्रो नो स्वभाष ते मंदगतिए चालवू, आगळ चालतां शंकाधी पाछळ जोया करवु, शरीर शीतलने कोमळ, बोलतां हाथ उछाळवा, कंडे हाथ दइ थालवू. छातीपर पत्र न. होयतो हाथथी छाती ढांकषी, योलता बोलतां भकुदी . ढावधी. श्रीवत पाळता सेथा पाड्या, आभूषणो प्रिय लागे, स्नानादि गुप्त करे, पुरुषनी सभामा भय ने शंकाषाको थाय, बीना समुदायमा निःशक
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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