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अंताप
अंतरींप हतुक गृह अहचाय
हेतुक गृह
३७८
३७८
पिनाने मामनो शिष्य करवा शरु क्यों ७६८॥ जाणे
बचाय का पोनान गामनो शिष्ये करचो शा कयों ७६८|| का आणे
३८५
पछे
ममांगा रेते प्राभन विपुलमिति पूर्वादिभद् वाळी समवा
छवास्थ मीमांसा रैनैः प्राभृन विपुलमति पूर्वाविभृद् पालो ममजवा
श्रिय
बुद्धि
मामान्य धर्म
वृत्ति सामाधर्म थी अमात्र स्थानेस्थने बन्धु भवि जोबाने (वे)
नथी अभाव स्थानस्थाने बन्धुः भावें जीवोने