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________________ (१९.) ॥ समुधातबारे मारणापैकि आहा०मा०विचारः ।। (हार पण ( आयुष्यना ) नवा पुनलोने ग्रहण न करे. ॥ २७ ॥ यहिं विशेष ए छे के-" कोइक दीन कम रकममा का गरमादिक उत्पन थाप, स्यां (भवधारणीय पुगकोनो)आहार करे अने शरीर पांधे, अने कोइक जीवना (प्रथम रचेली ) समुद्घालथी निवृत्त थइ पोताना ( प्रथमना मूळ ) शरीरमा आवीने फरी वीजीवार समुद्यात करी त्यां उत्पन्न थाय " ए भावार्थ भगवतीमा ६ हा शतकना ६ छा उद्देशामा नरफयी अनुत्तरसुधीनां सर्व स्थाने कहेलो के एम जाणवूए प्रमाणे मरणसमु० न स्वरूप का ॥ बैकिप समुद्घासने प्राप्त धयको वैक्रियलब्धिवाळो जीव कर्मचडे वाटायला पोताना जीवप्रदेशोने शरीरथी बहार काठी होळाइ अने जाडाइमा शरीरतल्प अने लगाइमा संख्यान योजन जेटलो यइने ते समुद्घानधी प्रथम उपार्जन करेला बैंक्रिय नामकर्मना प्रदेशोने खपावतो छनो नवा वै. शरीरयोग्य पदलस्कंधोने ग्रहण करी ते वैक्रियशरीर रचे ले. ॥ २८-९-३० ।। एरीने बैकियसमुयात जाणवो. (तैजस समुद्घालविचार कहे छे) सैनमसमुद्घातने भाप्त थयेलो तेजोलेश्या नामनी लम्धिवाळो जीय कर्मरडे वीटायला आत्मपदेशना समूहनो बैंक्रिय माफक देनी होळाइ अने जाडाइ जेटली अने संख्यातयोजन दीर्घ (आत्मपदेशनो) देह बहार काढी पूर्व बांधेका तेजसना. १ मरण भने मरण ल मुदघात बे भिन्न छ कारणके कोर मीच मरणसमुधातपूर्षक मरण पमे छ, अने कोइजीब मरणसमुद्घात कर्या विना मरण पामे छ. अने एक भषमा पधुम वधु वे मरणसमुदधात याप छे. ज्यारे बे मरणममुद्धान पाय छे, स्यारे जीद बोझी समुवघातमां मरण पामे छ अने हेली समुद्घाम मरण पहेलो अन्तर्मुद्रत शंधे थाय छे, अने पारे एका मरणसमुदघान करे प्यारे अन्तर्मु शेषे समुवघात करे अने त्याग्बाद तेज समुदघानमा पतनों समु. नु अन्तर्मुः पूर्ण थये मरण पामे.-अथवा जीवन मरण १-२-३-१ समय सुधी होय छ, भने मरणसमु. अनर्मु. प्रमाण छ मरण ते आयु:प्राणमो थियोन (य) अने ते क्षय करवा माटेनी प्रयत्न ते मरण समुद्यान इत्यादि मेदोशी पवनं भिन्न छ, २ क्रिय-अने वै० समु० ए ये पण भिन्न छ, कारण से वै0 समुनो का अन्तमु. प्रमाण अने घनो काळ देचोने ॥ मास जेटलो छ, पतु उत्सरबक्रिय करतां हेला पै० समु० अवश्य करो पढे अर्याल ३० समु० बढे उत्तरवै० देह. मी रचना हो शकेले, तथा घर समु० संख्यातपोजम होपरी ते उत्तरवैक्रिय साधिकलाखयोजन थापले अपेक्षा जाणवू अम्पथा - मां मास्ममवेशनी दीर्घमेणि मसरूपयोजन पण होय छे ३ तेजो केश्या १६ देशबाळवा समर्थ छैने देश क्षेत्र संन्यासयोजन प्रमाण थाय.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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