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( १७० ) || नारक निर्यत्रमनुष्याणां मरणान्तरसमुपातेऽवगाहविचार) (हार योजन जाडी ठीकरी के ते कळशोना निषय करेला नीचेना श्रीजा भागमां एक वायु, १२ गमां जळ अने वायु चे मिश्रित छे, तथा उपरना जीजा भागमा एक जळ छे, ॥१४६॥ अने तेथी सीमन्नकादि areramani रहेलो कोइक नारकी जीव पावालकलशनी नजीक रहीने मरणसमुद्घातने प्राप्त थयो छतो ॥ १४७ ॥ पाताळकळशनी ठीकरी भेदौने मध्यना अथवा उपरना जीजीभागमां महषपणे उत्पन्न यायछे।। १४८ ॥ कारणके मध्यतीपांशी अ (नीचे) मनुष्य अथवा निर्येच पंचेन्द्रिय होना नथी अने नारकजीवनी उत्पत्ति मनुष्य के तिचविना वीजा को जीवपणे होती नथी ( माटे नारकी ज०० अवगाहना नीचे किंचित् अधिक १००० योजन प्रमाण है.) ॥ १४९ ॥ तथा नीचे नारकली उत्कृष्ट तेजस अवगाहना ( तिर्यग लोकधी ) ७ मी नमनमापृथ्वी सुधीनी छे, कारणके नारकी जीवोने लेल्लापां ऐल्लुं पोतानुं स्थान प सातमी पृथ्वी ज है, ॥ १५० ॥ तथा नारकजीवनी तिर्यक् तैजस अवगाहना स्व भूरमणसमुद्री छे, कारणके नारकजीवो स्यां मत्स्यादिपणे उत्पन थाय छे. ॥ १५६ ॥ तथा नारक जीवोनी ऊर्ध्व तैजस अवगाहना पांडुनम रहे जलाशय सुधी, अने त्यांधी आगळ तो काइपण स्थाने मनुष्य अने नियंचपनेन्द्रियनी उत्पत्ति क्रेम नहि, ए प्रमाणे नारकजीयोनी अध अने कि तैजस अवगाहना जन्यधी अने उत्कृष्टथी कही ॥ १५२ ॥ तिर्यगमनुष्यावगाहना पंचेन्द्रियचिनी जघन्य अने स्कृष्ट तेजस अवगाहना विकलेन्द्रियवन जारी. ।। १५३ ।। तथा मैनुप्योनी जघः तेजसमवगाहना अंगुलना असंख्यातमाभागजेटली भने उत्कृष्ट मनुष्यलोकथी लोकना छेडासुधीनी कहेली . ॥१५४॥ भवनव्यन्तरज्योतिष्काय द्विस्वर्गना किनाम् । अङ्गुलासंख्येयभागमाना ज्ञेया जघन्यतः ॥ १५५ ॥ ममत्वाभिनिविष्टानां स्व१. फळशमी १ लाख योजनमो उडाइना ३ भाग करतां दक भाग ३३३३३ योजन प्रमाण धाय तेटला भागमां
२ सा नारकना सर्व मकी ४९ प्रतरमा ४९ इन्द्रक (मुख्य) नरकापाम खे, मानो की सीमन्तक मरकाषास पहेली रत्नप्रभा पृथ्वीमां हेला प्रत रनी है. मरकाबास पटले अनेक नारीओने उपजवान एक विभाग
३ मनुष्य जे स्थाने मरण पामे तेज स्थाने अन्यसीषपणे उत्पन्न थतां जप तथा लोकमे छेडे एकेश्यिपणे उत्पन्न यस उत्कृ० अ० धाय.