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॥ योनिद्वारेयोनिमेदनिरूपणम् ॥
भाः 1 शेषा अशुभाः, शुभवर्णैकेन्द्रियादयः ॥ देवेन्द्रचक्रवर्ति- 1 स्वादि मुक्त्वा च तीर्थकरभावं । अनगारभाविततामपि शेषाः (भावाः) अनन्तशः प्राप्ताः ॥ ] इति योनिस्वरूपम ।।
उपर कहेला योनिमा मेदो सर्व जीवो आश्रयि कन्या अने हवे जे भेदमात्र मनुष्यने आश्रयिज होय ले ते को छे.
मनुष्योनी योनि शंखावादिभेदथी ३ प्रकारनी है, मां जे योनिमा शंख सरखो आवर्त ( ऑटो--भमरो ) होय ते अहि शंग्वावर्सयोनि फहवाय ।। ५६ ॥ तथा जे योनि काचबानी पीठ सरखी उन्नत-उंचा भागवाळी होय ते कूर्मोमतायोनि कहेवाय छे, अने जे योनि वासनां जोडायला ये पत्र सरखा आकास्वाळी होय ते वंशीपत्रायोनि कहेवाय छे. ॥५७ ॥ तेमा चक्रवर्तीना श्री रत्नने ( मुख्य पटराणीने ) गर्भोत्पत्ति रहिन एवी शंखावर्तयोनि होय छे, कारण के ते योनिवाळी स्वीना गर्भमां जीवो गर्भपणे आवीने उत्पन्न धाय छे. परन्तु नेओ जन्मता (जीवता ) नथी ।। ५८ ॥ जेथी अति प्रथल कामाग्निवहे से जीवो उत्पन्न थनां न विनाश पामी जाय छे. जेम कुरुमतिना हाथथी स्पर्श करायलो लोहपुत्रक ( लोखण्डनु पूतळ) पण गळी गयोः ॥ ५ ॥ ___ श्री प्रज्ञापनासूत्रमा कर्जा के के-"शंखावयोनि स्त्रीरन्नने होय" अरिहन्त-चक्रवर्ति-वासुदेव अने बळदेव ए चारनीज पानाओनी बीजी कोन्नसायोनि होय, अने बीजी सामान्य स्त्रीयोनी जीजी बंशीपत्रायोनि होय छे. ॥ ६० ॥ आ योनियोना प्रण मेद त्रण प्रकारे ( एरले सर्व मली ९ प्रकार )
१ अलवत्त चयतिनी मुख्य स्त्री (स्री रत्न) कुरुमतिप लोपण्डना पुत. काने हाथ बडे स्पर्शतां ते समर्छ रसमय थइ गयु.
शंका-जो लोदान न स्त्रीरत्नना स्पर्शवडे गटी जाय तो नेधी स्त्री सुवर्णादिकां आभूषण केथी रीते पहेगी शके ?
उतर-- अति कामानुर युक्त थइ विषय इछा पूर्वक स्पर्श करमाथी लोहपुत्र(पूतळगली गयो पम जाणयु, जेधी आमूषणाविक हेग्थामा तथा वीजा जीव अजीबना स्पर्शमां करपणा अडचण थाय नहिं
२ कुम्भुम्नताप जोणीप तिनिहा उत्तमपुरिसा गभ्भ यक्कमति जहा-अरहन्ता--थक्कषट्टी-पळदेवा बासुदेवा ( इति ठाणांगतृतीय स्थाने )
३ शीपत्रावि णे भेद बालयोनिमा जाणषा