________________
( १४६ )
। योनिद्वारतद्भेदविशेषवर्णनम् ॥
(खार
व्याप्त थयेला होय तेवां जीवतां जे शरीर विगेरे ते सचित्तायोनि तथा शुष्क (सुका) काष्ट विगेरे सरखी अजीव ते अवित्तायोनि कत्राय ॥ ५३ ॥ ए हेतुथीज सूक्ष्म प्राणीओकडे त्रणे लोक भरेला होते छते पण ते क्ष्मजीवोना आममदेशीवडे अचिचयोनियोने सचित्तपणुं प्राप्त यतुं नथी. ॥ ६४ ॥ अने कंक सचित्त अनेक अचित्त एवी जे योनि ते मिश्रयोनि कहली छे, मनुष्य अने तिचोनी योनियां जे वीर्य अने रुधिरना ( जेटला ) दुगलो आत्ममदेशोसाथै एकरूपता धाम्या होय ( अर्थात् जेमां आत्मप्रदेशो व्याप्त थया होय ) तेटला मुगलो सचित्त अने वीजा पुद्गलो (वीर्य- रुधिरना ) अचित्त छे, ए प्रमाणे सचित अनं अचित्तना योगयी ते योनिने मिश्रणुं कहे . ॥ ५५ ॥ "स्त्रीयोने निश्चय नाभियो नीचे पुष्पमाळानी जनोइने आकार मे शिराओ ( नसो ) छे तेनी नीचे नीचामुखे रहेली कमलडोडाना आकारवाळी 'योनि छे, अने ते योनिधी बहार आंवानी कळो (मञ्जरी) सरखी मांसनी मञ्जरीयो थाय छे. ते मांसनी मारीयो ऋधिर झरखाना स्वभाववाळी होवाथी (लगभग) दरमा रुधिर झरे छे (जेने अटकाव - अडचण - ओपटी इत्यादि कहे . ) ते झरना रुधिरना hear अंश कमलडोडाना आकारवाळी योनिमा प्रवेश करीने रहे थे, त्यास्वाद (संभोगथी ) वीर्य मिश्र थयेला ते रुधिरना अंशनो आहार करतो जीव ते योनियां उत्पन्न थाय छे. त्यां योनिए जे वीदेशों आत्मसात् [ पोताना रूपजीवप्रदेश व्याप्त ] कर्या होय ते वीर्यमदेशो सचित्त अने कदाचित् मिश्र होय छे, अनं जे वीर्यप्रदेश योनिरूपने (योनिगत आत्मप्रदेश व्याप्तपणाने ) नपाम्या होय ते वीर्यपदेशो अचित्त होय हे -वळी बीजा आचार्यों एम कछे के" रुधिर सचित्त के अने वीर्य अचित्त है." अने केटलाएक एम कहे छे के "वीर्य अने रुधिर अचित्त छे, अने योनिना प्रदेशी सचित्त ले ए हेतुथी मिश्रयोनि कहेवाय के" इति तवार्थे वीजा अध्यायना ३३ मा सूत्रनी वृत्तिमां छे.
योनिस्त्रिधा मनुष्याणां शंखावर्तादिभेदतः । यस्यां शंखख इवावर्त्तः, शंखावर्त्ता तु तत्र सा ॥ ५६ ॥ कूर्मोन्तता भवे
२ योनि अभ्यन्तर अने या एम के प्रकारनी है तेमां आ चालतुं स्वरूप अभ्यन्तर योनिनुं छे, के जे यांनि खोना गर्भाशय रूप छे, प अभ्यन्तर योनिमांज जीवनी उत्पत्ति होय हे अने आगळ कडेवाली शंखार्त्तादि दवाळी योनि के जे वालिङ्ग आकाररूप हे ने ब्राह्मयोनि जाणवी.