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________________ ॥ सिद्धमाभृतोक्तद्वारविशेषविचारः ॥ TULA ( १२८ ) मने ययाख्यान पामी मोक्षे जाय, ( लिंग ) - गृह० ४, अन्य० १०, स्वलिं० २०८ ( उत्कृष्टद्वार - अतिपतित सम्यकस्व ४, संख्यातकाल प्रतिप स १०, असे० कालप्र० स० १०, अनंन० कालम सम्पवस्व ० १०८, ( निरन्तरकालवार ) - जे द्वारमां १०८ नी सिद्धि ते द्वारम ८ समय निरन्तर पण होय. ! जे द्वारा २०-१० नी सिद्धि ने द्वारमा ४ समय निरन्तर, जे द्वारमा दशथी ओछा सिद्ध होय ते द्वारयां २ समय निरन्तर वर्षपृथकत्व, घातकीखडमां ( क्षेत्रमा अन्तरद्वार अघी ) - जंबूद्वीप वर्षपृues, अने पुष्करार्धयां साधिकवर्ष. ( क्षेत्र अन्तरबार विभागथी ) - जंबूदीपनी महाविदेहां, धानकी० महाविदेहमां, अने पुष्कर महाविदेहयां एत्रणे महाविदेहां स्कृष्ट वर्षपृथक अन्तर है, अने भरन- असामान्यश्री संख्यान वर्ष (हजारो वर्षेनुं) अन्गर के. [काळविभागमां अन्तर ] - उत्स तथा अवस०मां जन्मधी १९ कोडा कोडि सागरोपम, अने संहरणयी साधिक १० कोटाकोडि सागरोपम । तथा उत्स० अने अवसमां एकान्त विभागथी जन्मनी अपेक्षाए तेमज संहरण अपेक्षा पण सेपूर्ण २० कोडा कोडिसागरोपम । नथा उत्सर्पिणी अने अवस० ना बन्ने दुःषमदुःषम आरा संबन्धि प्रत्येकमां जन्मअपेक्षा २० कोटाकोडी सागरोपम, अने कालपी किंचित् न्यून ८४००० वर्ष, अने संहरणश्री देशोन ४२००० वर्ष ए प्रमाणे वे दुःषम आराम अने शेष आराओमां पण अन्यधी काळी अने महरणी अनन्तरोक्त ने दुःषपदुःषम आरानी पेठे तुल्य अन्तर जाणवुं । वे उमपिंणी भने अवसर्पिणी ए वे काळने विषे ओवयी - सामान्यथी पिडितुं अन्तर विचारी तो १८ कोडाकोटि सागरोपम जेटलं उत्कृष्ट अन्तर के अने (मध्यम) १६ फोडा कोडि सागरोपमनुं अन्तर छे तेमज १४ कोडा कोडि सागरोपम अने १२ कोडाकोडि सागरोपमनुं अम्मर हे अने जघन्य अन्तर सर्वत्र १ समय है. [गनिद्वार] - सर्वगति ओम संख्पान हजारवर्षनु अन्तर ले, ते अनन्तरागतनी अपेक्षाए जावं, ते पण वैमानिकथी आवेला जीवनी अपेक्षाए सिद्धिनु अतर साविक १ वर्ष छे जघन्य अन्तर सर्वत्र १ समय ( उपदेश - निमित्त सिद्धादि विचार सिद्धप्राभृतथी जावो.) [वेदद्वार] - पुरुषश्री अनन्तरागत तथा पुरुषलिंगे मितुं अन्तर साधि
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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