________________
(१२) ॥ अगुरुलघुपर्याय-हानिवृद्धिचक्रविचारः ।। प्रदेश कहेला छे, ते प्रदेशो वीजा आकाश श्यना अनंत छे, अने प्रथमना ये द्रव्यना (धर्मा. अधर्मा० ना ) असंख्यात छ. ॥५१॥ बळी आ त्रणे द्रव्यो अनंत अगुरुलघु पर्यायोवढे आश्रित छे, ( अर्थात् ए त्रणमां अनंना अगुरु लघु पर्याप छे, ) कारणके अरूपी द्रव्योमा एन पर्यायो छ. ।। ५२ ॥
---
-
-
जे गुणवरे प्रध्यमां ६ प्रकारनी हानि अने ६ प्रकाग्नी वृद्धिनी पर्तना होय ते अगुरुलघुगुणा कहेधाय, अने ते गुणवहे प्रवर्तती ६ प्रकारनी वृद्धि था हानि ते अगुरुलधुपर्याय कहेवाय, तें वृद्धिहानिनो नाम आ प्रमाणे --
१ अनन्तभागवृद्धि । १ अनन्तभागहानि असंख्यभागवृद्धि
२ असंख्यभागहानि ३ भख्यभागवृद्धि
३ संख्यभागहानि ४ मख्यगुणवृद्धि
४ संख्यगुणहामि ५ असंख्यगुणवृद्धि
५ असंकयगुणहानि ६ अनन्तगुणवृद्धि
६ अमरतगुणहानि प ६ प्रकारनी वृद्धि हानि स १ बलयमा प्रतिममये पते छे. मात्र प पण व्रव्यांज मुछे पम नथो. अरूपि द्रव्योमा कर बाबतनी वृद्धि षा हानि अषत छे ते सम्बन्ध अतिविस्तृत हावाथी श्रीच हुश्रुनी समजषा योग्य छ, प हानिवृधिनी समज नीचे प्रमाणे
१ कोइक राशिना अनन्त भाग करीए तेमांनी पकज भाग अधिक होय ते अनन्तभागवृद्धि. ( जेनी अंक स्थापना अहिं दर्शावाशे )आ भाग बटु नानो होय छे,
२ कोइक राशिना असंख्य भाग करीप तेमांनी एक भाग अधिक होय ता असंख्यभागवृति कहेवाय. आ एक भाग पूकि अनन्तभाग करता महोटी होय छे.
३ कोइक राशिना संख्याप्त माग फरीप, तेमांनो , भाग वधे तो मं. रळ्यभागवृद्धि आ भाग पूर्योक्त असंख्यभाग करतां पण म्होटो होय है.
४ कोहक राशिने मंण्यात राशिवडे गुणीए अने जे जबाब भावे ते संख्यगुणवृद्धिधालो जाणयो. आ संख्यातराशि जो के पूीक्त अनम्मभाग विगेरे ३ भागोथी मोटी होय अधषा न्हानी पण होय, तोपण ५ राशियडे गुणायलो गशि तो यर्योक्त प्रणे राशिओथी मोटोज होय.
५ कोइकराशिने असंख्यात्मक राशिवडे गुणतां जे अबाब आवे ते जयाबराशि असंख्य गुण कषाय. आ जवावराशि पूर्वक्ति सर्व राशि करतां मोटी होय छे.
६ कोइक राशिमे अनन्तरूप राशिधद्धे गुणतां # अवाब आये ते जवाब राशि अनन्तगुण कवाय. आ जाबराशि पूषित पांच राशिथी म्होटो होयछे.