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॥ लोकप्रकाशे प्रथम सर्गः ॥ (सा. २५) (८७) (राज्यपाळे) छे तेम ए पण जगनने धारण करे थे. ॥२७॥ अने अलो काकाश तो धर्मास्तिकायादि ५ द्रश्यरहिन के ए नफाबतना कारणयीज अलोकाकाशने लोकाकाशथी जुदो कहेल है. ॥ २८ ।। बली आ अलोकाकाश अनंत छ तोपग पूवाचार्योंए एनी मोटाइनु उदाहरण असत्कल्पनाप करीने पांचमा अंगमा (श्री भगव० मां) कहेल छ ॥ २९ ॥ ते आ प्रमाणे--[अलोकमहत्ता दृष्टान्त ]
सुदर्शन नामना सुरगिरिनी ( मेरु पर्वननी) दशे दिशाओमा कोइक दन्न (१०) कौतुकी देवो रहेला छे, ।।३०|| अने मानुषोत्तर पर्वमने छेडे ( एटले मेरुपर्वनथी २२।। लाख योजन दूर ) आठ दिशाओने विषे चाहेर मुख करीने (बहारना द्वीप समुद्रो तरफ मुख करीने ) रहेली आठ दिकछमारीओ (देवीपो) पोतपोतानी दिशा तरफ बलिपिड फेंके ।। ३१ ॥ अने ते दिक्कुमारीओर सहुए एक साथे फेकलो वलिपिंट पृथ्वी उपर पहचाविना अधरथीज तेओषांनो कोहएक देव जे गतिवडे करीने शीघ्र उपाही ले ॥ ६२ ॥ तेवरी शीघ्रगनिए अ. लोकनो अन्न देखवानी इच्छाए ते देवो दशे दिशाओमां एक साथे चालवा मोडे ॥ ३३ ते यह कोइक अस्पन लाख वर्षना आयुष्यवाळो पुत्र जन्म्यो, पुनः ते पुत्रने घेर पण तेवोज ( लाख वर्षना आयुष्यवालो ) पुत्र जनयो चली ए पुत्रने पण तेवोज ( लाख वर्पना आयुष्यवाळो ) पुत्र जन्म्यो प प्रमाणे सात पेढीओ सुधी लाख लाख वर्षायुष्यवाळा पुत्रनो जन्म यतो रहो, ॥३४॥ इसे काळे करीने तेवा प्रकारना (लाख लाख वर्षना आयुवाला) माते पुरुषो मरण पाम्या, त्यारवाद तेनां हार मजा मांस विगेरे अने तेओर्नु नाम पण अनुक्रमे नाश पाम्युं ||३५||इये ए वखते कोइक जिज्ञासु श्री सर्वनने प्रश्न करे के हे स्वामिन् ! ते देवोर्नु अगतक्षेत्र (जवाने बाकी रहेल क्षेत्र ) घणु के के गत क्षेत्र ( गयेलउल्लंघन करेल क्षेत्र ) घणु छ ? ॥ ३६ ॥ ते वखते श्री सर्वज्ञ उसर आप के उल्लंघेल क्षेत्र अति अल्प छ, अने वीजें जबाने बाकी रहेळ क्षेत्र घणुं छे, अने ते अ. हिं उल्लंघन करेल क्षेत्र पाकी रहेल क्षेत्रथी अनन्तमा भाग जेटलं अल्प छे (अर्थात ) हजी अनंतगुण क्षेत्र जवाने बाकी रहेल छ. ॥ ३७॥
स्थित्वा सुरोऽपि लोकान्ते, नालोके स्वकरादिकम् । ईष्टे
१ मानुपौत्तर पर्वतनी बाह्यपरिधिना जेटला योजन थाय तेथी पण बलि पिंडो मेंटले दूर जाय तेटला योजन अधिक शीघ्र फरवा.प बलिपिंटो जमीन उपर पहचान देना ग्रहण करवा माटे जेवी गति थाय तेषी.