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|| असंख्यातादिस्वरूपं कार्ममन्धिकविचारः ॥
वर्ग करेला जय० अ० अ०मां मेळवी ।। १२५ ।। बळी मेळवीने पण तेनो पुनः
वार वर्ग करवो, ए प्रमाणे कर्वे छते जे संख्या आये मांधी एक बाद करीए वो उत्कृष्ट असं असं० पाप ॥ १९६॥ पुनः ए उ० असं० असं०मां एक मेळतां जय० प्रत्येक तयाग ने जागळ ने उ० प्र० अनन्तनी नीचे सर्व मध्यम प्रत्येक अनंत वाय ॥ १९७ ॥ तथा पूर्ववत् ज० प्रत्ये० अनन्तनो अभ्यास गुणाकार करी एक कमी करवाथी उत्कृष्ट भ त्येक अनंत धाय ॥ १९८ ॥ पुनः तेषां एक प्रक्षेप कर्ये छते अघ० युक्त अनंत थाय, आज यु० अनन्त जेटलान अभव्यजीवो के पुनः ज० यु० अनन्तथी आगळ उ० यु० अनन्तथी नीचेनी सर्व संख्या मध्यम युक्त अनंन कड़ेवाय ।। २९९ ।। तथा जघ० युक्त अनन्तनो वर्ग करी १ कमी करतां जन् ष्ट युक्त अनंत धाय एम पूर्वाचार्योए क छे, ॥ २०० ॥ पुनः ए उ० पु० अनन्त ? अधिक मेळवतां जघन्य अनंतानंत याय, अने पूर्वनी पेठे अनन्तानन्त सुधीनी (बच्नेनी ) संख्याओ सर्व मध्यम अनंतानंत गणाय, || २०१ ॥ पुनः ज० अनन्तानन्तनो प्रणवार वर्ग करतो त्यारबाद तेमां आ आगळ कहेबाना ६ पदार्थों मेळवा || २०२ ॥ ते ६ पदार्थों आ प्रमाणे- १ - नस्पति-२ निगोदना सर्वजीव-३ सर्वसिद्ध-४ सर्वपुल ५ सकाळना समय (त्रणे काळना समय) - अने ६ सर्व अकोकाकाशना प्रदेश ( ए ६५दार्थों मेळवीने ॥ २०३ ॥ पुनः ऋणदार वर्ग कर्ये छते जे संख्या प्राप्त पाय ते संख्यामां के छज्ञान अने केवलदर्शनना अनन्तपर्याय मेळवा ॥ २०४ ॥ एममा कर्ये छते उत्कृष्ट अनंतानंत धाय. परन्तु आ उ० अनन्तानन्तमां (घडे) कोइषण मापी शकाय एत्रो पदार्थ नहि होवाथी पनो व्यवहार प्रवर्त्तनो नेथी. ॥ २०५ ॥ ( मतभेद निःस्यन्द अनन्तकप्रयोजनविचार )
१ अहिं प्ररुणानो तफावत मात्र चार कागंज आयो के से आ प्रमाण१ उत्कृष्ट युक्त असंख्यात सिद्धांतने मते ज० यु० अ० मा अभ्यास गुणाकारमाथी एक कमी करवायी थाय छे अने कार्मग्रन्थिकमले ज० पृ० अ० ना बम १ कमी करणायो थाय छे.
२ उत्कृष्ट असे अनं० सिद्धांतने मते जय असं असं ना अभ्यास गुणाकारमाथी १ कर्मी करवायी थाय छे। अने कार्मप्रन्थिकमते जघ० असं०अनं० नो णधार वर्ग करी पूर्वोक्त १० असंख्यात वस्तुओं मेळषी पुनः पणधार वर्ग की एक कमी करणाथी थाय छे.