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________________ ( ७२ ) वलय मन्त्रोद्धार : उथम्भेइ जलजलणं चितियमित्तेण पञ्चरणमकारो परिमारि चोरराउघोरुवसग्गं विरगासेइ १ || स्वाहा २ ॥ प्राकृत मन्त्रोऽयम् । इवमग्निस्तम्भनयन्त्रम् || [ हिन्दी टीका ] - देवदत्त के नाम के ऊपर ग्लौं लिखकर फिर अष्टदल कमल बनाकर उस प्रत्येक कमल दल में म्ल्क्य पिंडाक्षर लिखे, फिर बाहर दिव्य मंडल लिखे, ऊपर के वलय में ठकार लिखे, उसके बाद पृथ्वी मंडल बनाकर विपुल - शिलातल सम्पुट करे । यह यंत्र शिलासंपुट पर केशरादि सुगन्धि द्रव्यों से लिखकर दिव्य अग्नि की शांति के लिये श्री महावीर स्वामी के चरण युगल के पास रख देवे ||४|| मंत्रोद्वार : -- ॐ थंभेइ अमुके अमुकस्स जल ज्जलगं चिन्तिय मिन्तेरा पंचम या परि मारि चोर राउल घोख्वसग्गविरगाइ स्वाहा || दिव्य अग्नि स्तंभन यंत्र चित्र नं. १८ देखे । दिव्येषु जलतुलाफरिणखगेषु पवहक्षपिण्डमा विलिखेत् । पूर्वोक्ताष्ट दलेष्वपि पूर्ववदन्यत् पुनः सर्वम् ||५|| [ संस्कृत टीका ] - 'दव्येषु' चतुर्षु दिव्येषु । कथम्भूतेषु ? 'जलतुलाफरिणखगेषु' जल दिव्ये तुलादिव्ये षटसर्पदिध्ये पक्षिविथ्ये, एतेषु चतुर्षु दिव्येषु । 'पवहक्षपिण्डे' जल दिव्ये स्व्य" इति पिण्डम् तुलादिव्ये म्यू" इति पिण्डम्, फलिदिथ्ये हस्थ्य इतिपिण्डम् पक्षिदिव्ये क्षम्य इति पिण्डम् । 'प्राविलिखेत्' समन्ताद्विलिखेत् । केषु ? ' पूर्वोक्ताष्टदलेषु' प्राग्विलिखिताष्टदलेषु । कथित चतुदिव्येषु पत्रहक्षपिण्डाः क्रमेण लेखनीयाः । श्रपिशब्दाद् मध्येऽपि च । 'पूर्ववदन्यत् पुनः सर्वं अन्यत् पुनः यन्त्रोद्धारं प्राग्लिखितं यथा तथैव सर्वम् ||५।। [ हिन्दी टीका ] - चारों दिव्य स्तंभन के लिये जल, तुला, सर्प, पक्षी के स्तंभन के लिये, पूर्वोक्त आठों दलों में क्रमशः प, व, ह और क्ष से युक्त पिण्डाक्षरों को लिखे, जल दिव्य स्तम्भन के लिये फ्ल्यू" लिखे, तुला दिव्य स्तंभन के लिये भ्यू पिडाक्षर लिखे, सर्प दिव्य स्तंभन के लिये म्यू" पिडाक्षर लिखो ये सब १. ह्रां ह्रौं ह्रः पणासेउ इति ख पाठः । २. ठः ठः ठः ।
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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