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[हिन्दी टीका ] फिर घी, दुध, शकर से संयुक्त गुग्गुल को चने के बराबर ३०,००० तीस हजार गोली बनावे, इन गोलियों से होम करे, पद्मावती देवी सिद्ध होती है || ३६ || यंत्र चित्र नं ४ देखे ।
मन्त्रस्यान्ते नमः शब्दं देवताराधना विधो ।
तदन्ते होमकाले तु स्वाहा शब्दं नियोजयेत् ||३७||
[ संस्कृत टोका ]- मंत्रस्यान्ते' मन्त्रपरिसमाप्तौ । 'नामः शब्द' नमः इति वाक्यम् । श्व? 'देवताराधनाविधौ देव्या मन्त्राराधनविधाने संयोजयेत् । 'तु' पुनः । ' तदन्ते' मन्त्राराधनान्ते । होमकाले' हवन समये । 'स्वाहा शब्द' स्वाहेतिशब्दम् । 'नियोजयेत्' संयोजयेत् ॥ ३७॥
[ हिन्दी टीका ] - मंत्र के अन्त में नमः । शब्द लगाकर जाप्य व रे, फिर होम करने के समय मंत्र के अन्त में स्वाहा शब्द लगाकर होम करे, तब सिद्धि हो जाती है ||३७||
धरणेन्द्र यक्ष को साधनविधि
शलक्षजाय होमात् प्रत्यक्षो भवति पार्श्वयोऽसौ ।
न्यग्रोध मूलवासी श्यामाङ्गस्त्रिनयनो नूनम् ॥ ३८ ॥
[ संस्कृत ठीक। ] - ' दशलक्ष जाप्यहोमात्' दशलक्ष जाय हवनात् । 'प्रत्यक्षो भवति' साक्षात् प्रत्यक्षो भवति । कः ? 'पार्श्वयक्षोऽसौ' असौ पाश्वतामधेयो यक्षः । कथंभूतः ? 'न्यग्रोधमूलवासो' वटवृक्षमूलवासी । किंविशिष्टः ? 'श्यामाङ्गः ' पुनः कथंभूतः ? 'त्रिनयतः ' त्रिनेत्र: । 'नूनम्' निश्चितम् ||३८|| मन्त्र :- ॐ ह्रो पार्श्वयक्ष ! दिव्य रुपे महर्षस्य एहि एहि उ कों ह्रीं नमः ॥ यक्षाराधनविधान मन्त्रोऽयम् ||३८||
| हिन्दी टीका ] - धरोन्द्र यक्ष के मंत्रो का दश लाख जाप्य करने से ववृक्ष के ऊपर रहने वाले पार्श्वयक्ष जो की काला रंग वाला, और त्रिनेत्र वाला है, उसयक्ष की सिद्धि होती है, होम १,००,००० एक लाख मंत्रों से करे । याने १०,००० दशलक्ष जाय से और एकलक्ष मंत्र होम से वरन्द्रयक्ष की सिद्धि होती है ||३८||
१. रुप इति पाठः । २ दर्पण इति पाठः ।