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गच्छति जः स्त्रि स्यात्, प्राक्कथित मंत्रस्याने स्व स्थानं गच्छ २ जः जः जः इति त्रिवारं योजयेत्, क्य विसर्जने, देव्याविसर्जने ।
___ मंत्रोद्धार-ॐ ह्रीं नमोस्तु भगवति पपावति एहो हि सँवो षडित्याह्वानं ॥१॥ ॐ ह्री नमोस्तु भगवति पद्मावति तिष्ठ २ ठः ठः इति स्थितिकरणं ॥२॥ ॐ ह्रीं नमोस्तु भगवति पद्मावति मम् सन्निहिता भव भवडिति सन्निधि करणं ॥३॥ ॐ ह्रीं नमोस्तु भगवति पद्मावति मंधादीन् गृल २ नमः । इति पूजाभिधानं । ॐ ह्री' नमोस्तु भगवति पद्मावति स्व स्थानं गच्छ २ जः जः जः, इति विसर्जनं ॥२७॥
[हिन्दी टीका] -ग्राह्वानन स्थापन और संनिधिकरण करने के बाद पूर्वो क्त मंत्र का उच्चारण करता हुआ जल, गंध, अक्षत, पुष्प, चरू दीप, धूप, फल, अध्य को समर्पण करता हुआ, गृह २ बोलता हुआ, पूर्वोक्त मंत्र के साथ स्वस्थानं गच्छ २ जः ३ इस प्रकार तीन बार कहे, देबी का विसर्जन करने के लिये ।।२७।।
पूजा मंत्र के लिये मंत्र रचना : मंत्रोद्धार :-ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवति पद्मावति एहि एहि संवौषट्
ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवति पद्मावति तिष्ठ २ ठः ठः, ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवति पद्मावति मम्सन्निहिता भव २ वषट् ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवति पद्मावति जलं, गृहारग २ गंध
ग्रहाण २ अक्षतं गृहारग २
आदि बोलकर पूजा करे, ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवति पद्मावति स्वस्थानं गच्छ २ जः ३ इन उपरोक्त मंत्रों को बोलकर अाह्वानन, स्थापन, सनिधिकररग, पूजा फिर विसर्जन करे । इस प्रकार देवी की पूजा करे ॥२७॥
पूरक रेचक योगादाह्वान विसर्जनं करोतु बुधः । पूजाभिमुखी करणे स्थापन कर्माणि कुंभकतः ॥२८॥
[संस्कृत टोका]--पूरक रेचक योगाद् बुधः प्राज्ञः देध्याह्वानं करोतु, रेचक योगात् देव्याः विसर्जनं कुर्यात्, पूजाभिमुखी करणे, स्थापन कर्मारिण कुभकतः, देव्यार्चनं, देच्या सनिधीकरणे, देव्या स्थापन एतानि कर्माणि कुभ योगे कुर्यात् ॥२८॥
[हिन्दी टीका]-बुद्धिमान् मनुष्य पूरक योग से देवी का आह्वानन करे, रेचक योग से देवी का विसर्जन करे, कुभक योग से पूजाविधि और सन्निधीकरण स्थापना करे ।।२।।