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६. ॐ ह्रीं कामोद्दीपनाय नमः ७. ॐ ह्रीं पद्मवर्णाय नमः ८. ॐ ह्र बैलोक्य क्षोभिण्यै नमः
उसके बाद अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग ख ङ च छ ज झ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह तक अंतः करिणका में लिखे ।।२१।।
भक्तियुतो भुवनेशः चतुः कलायुक्त फूटमयदेव्याः । वर्ण चतुष्क नमो तास्थाप्याःप्राच्यांदि विक्षुपद्मवहिः।।२२।।
[संस्कृत टीका]-भक्तियुतः उँ कार युक्तः । कः भुवनेशः । ह्रीं कारः, चतुष्कला युक्तः । श्रां ई ऊ ऊ ऐ इति चतुष्कला युक्तः कः कूटः क्षकारः, अथक्षकारा नंतरं देव्या वर्णचतुष्कः । पद्मावतीति वर्ण चतुष्टयं, नमो तं नमः शब्दांत मंत्रः स्थाप्यः स्थापनीयाः। केषु प्राच्याविक्षु, पूर्वादि चतुदिक्षुः, क्व पद्मावहिः अष्टदलकमलवहिः प्रदेशे, ॐ ह्रीं क्षां प नमः, इति प्राच्यां, ॐ ह्रीं क्षी या नमः इति याम्यां, ॐ ह्रीं क्ष व नमः इति पश्चिमायां, ॐ ह्रीं क्षौं ती नमः, इत्युत्तरस्यां लिखेत् ॥२२॥
हिन्दी टीका-उस अष्टदल कमल के बाहर चारों दिशा में क्रमशः भक्ति माने ॐ से युक्त, भुवनेशः माने ही कार सहित तथा आ ई ऊ ऐ ये चार कला से सहित कुटाक्षर भाने क्षकार और अंत में नमः लगाकर पद्मावती चार वर्गों को स्थापन करे, इनका लेखन क्रमः
ॐ ह्रीं क्षां पद्मावती देव्यै नमः, पूर्व दिशा में । ॐ ह्रीं क्षी पद्मावती देव्य नमः, दक्षिण दिशा में । ॐ ह्रीं झू पद्मावती देव्यै नमः, पश्चिम दिशा में । ॐ ह्रीं . पद्यावती दव्यै नमः, उत्तर दिशा में ।।२२।। इसके लिए देखे यंत्र का चित्र नं. २ एतत्पद्मावती देव्या भवेद्वषत्र चतुष्टयम् । पञ्चोपचारतः पूजां नित्यमस्याः करोत्थिति ॥२३॥
[संस्कृत टीका]--एतत्पद्मावती देव्याः एतत्कथित पद्मावती देव्या इत्येवं करोतु ॥२३॥
[हिन्दी टीका-इस प्रकार ये पद्मावती देवी के चार मुख समान है, इस. लिये नित्य ही इनकी पञ्चोपचार पूजा करनी चाहिये ॥२३॥