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________________ ( १८ ) साध्यनामाक्षरं गयं साधकायघर्पतः । नपुंसकं परित्यज्य कुर्यात् तद् वेवभाजितम् ॥१५॥ [संस्कृत टीका]-'साध्यनामाक्षर' साध्यनाम वर्णान् । 'साधकाह्वयवर्णतः' साधक नामाक्षरेभ्यः । 'गण्यं' गणयेत् । कि कृत्वा ? 'नपुंसकं परित्यज्य' ऋ ऋ ल ल, इति नपुंसकानि परित्यज्य । 'तद् वेव भाजितं' तत्-साध्यसाधकयोरनुस्वार व्यञ्जनगण्यमानराशि 'वेच भाजितं' चतुर्भाजितं कृर्यात् ॥१५॥ [हिन्दी टीका]-मंत्रवादी के नामाक्षरों से मंत्र के नाम के अक्षरों को नपुंसक अक्षरों को ऋ ऋ ल ल छोड़कर गणना करें, जो संख्या आवे उसको जोड़कर चार का भाग दें। उदाहरणार्थ : जैसे-"णमो सिद्धारण" यह मंत्र है, इसमें से अक्षर, स्वर, व्यंजन, अनुस्वार आदि को अलग-अलग करें। मंत्राक्षरों को अलग-अलग रखने का क्रम :-- ए + +म् +यो+स् + इ.++ +मा+ए++ अनुस्वार इसमें -व्यंजन संख्या =६ स्वर संख्या =५ अनुस्वार संख्या =१ अक्षर संख्या =५ अव मंत्री के नामाक्षर में से स्वर, व्यंजन, अक्षर, अनुस्वार को अलगअलग करते हैं। नाम-देवदत्त द्+ए+ + + + + + त् + = व्यंजन संख्या ५ स्वर संख्या = ४ अक्षर संख्या - ४ मंत्राक्षर संख्या मंत्री के नामाक्षर संख्या ४ इन दोनों को जोड़ें इसमें
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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