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( १० ) पञ्च नमस्कार पदैः प्रत्येकं प्रणयपूर्व होमान्त्यः । पूर्वोक्त पञ्च शून्यः परमेष्ठिपदाग्र विन्यस्तैः ॥३॥ शीर्ष वदनं हृदयं नाभि पादौ च रक्ष रक्षेति । कुर्यादेतैर्मन्त्री प्रतिदिवसं स्वाङ्ग विभ्यासम् ॥४॥ कुलकम् ॥
[ संस्कृत टोका 1-'पञ्चनमस्कार पदैः' अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्व साधूनां नमस्कारपूर्व पञ्चापदैः कथम्भूतैः ? 'प्रत्येकं प्रणवपूर्वहोमान्त्यः' पृथक-पृथक उँकार पूर्वस्वाहा शब्दान्तः । कथम्भूतः ? 'परमेष्ठिपदाविन्यस्तैः' पञ्चपरमेष्ठिनां पदाने यथाक्रमेण विशेषेण न्यस्तैः [कः 'पूर्वोक्त पञ्चशून्ये:' पूर्वोक्त: ह्रां ह्री ह. ह्रीं ह्रः इति रूपः पञ्चभिः शून्यः हकारः] ॥३॥
'शीर्ष' मस्तकम् । 'वदनं' प्रास्यम् । 'हृदय' हृत्स्थानम् । 'नाभि' नाभिस्थानम् । 'पादौ चरणद्वयम् । 'चः' समुच्चये । 'रक्ष रक्ष इति पदवयं । अनेन प्रकारेण 'एतः' कथित मन्त्रः । 'मन्त्री' मन्त्रवादी । 'प्रतिदिवस' दिन दिन प्रति । 'स्वाङ्ग विन्यास' स्वकीयाङ्गन्यासम् । 'कुर्यात्' करोतु ॥४॥
हिन्दी टीका]-पंच नमस्कार मंत्र पदों के आदि में ॐ और अंत में स्वाहा सहित पहले कहे हुये पंच शुन्याक्षर वीजों को प्रत्येक पद के साथ लगाकर क्रम से शिर, मुख, हृदय, नाभि और पैरों से बाचक पदों को लगाकर 'रक्ष-रक्ष' कहता हुआ अपने अंगों का नित्य न्यास करें।
ॐ णमो अरिहता ह्रां पद्मावती देवी मम शीर्ष रक्ष-२ स्वाहा । ॐ रामा सिद्धारा हा
॥ ॥ वदनं रक्ष-२ स्वाहा । ॐ णमो पाइरियागं ह
, हृदयं रक्ष-२ स्वाहा । ॐ रामो उवज्झायारां ह्रौं , , ,, नाभि रक्ष-२ स्वाहा । ॐ गगमो लोए सव्वसाहूरगं हः . . ., पादौ रक्ष-२ स्वाहा ।
इस प्रकार शून्य अक्षरों सहित नमस्कार मंत्रों से अपने अंगों का न्यास करने से मंत्री के अंगो की रक्षा होती है। मंत्री के अंगों को कोई भी उपद्रवकर्ता क्षति पहुँचा नहीं सकता है । इस प्रकार भी अंगन्यास कर सकते हैं ।
यहां पूर्ण अंगन्यास का क्रम देते हैं :