________________
-
[संस्कृत टीका]--'शुचिः' बाह्मा म्यन्तर शुचिः । 'प्रसन्नः' सौम्यचित्तः । 'गुरुदेवभक्तः' गुरुदेवेषु भक्तः । 'दृढयतः' गृहीतग्रसेष्वतिहढः । 'सत्यदयासमेतः' अनन्तवाक्यवयासमेतः । 'दक्षः' अतिचतुरः। 'पटुः' मेधावी । 'बीजपदावधारी' बीजाक्षरपदावधारणं विद्यते यस्यासौ बीजपदावधारी। 'ईशः' एवंविध एव पुरुषः । 'लोके' लोकमध्ये । 'मन्त्री' मन्त्रवादी 'भवेत्' स्यात् ॥१०॥
[हिन्दी टीका]--जो विशिष्ट गणों से बाह्य और अंतरंग को पवित्र रखनेवाला हो, प्रसन्नचित का धारक हो, देव, गरु का परम भक्त हो, लिये हुये व्रतों को दृढ़ता से पालन करनेवाला हो, सत्य का हो आश्रय लेनेवाला हो अर्थात् सत्य बोलने वाला हो, जिसकी अन्तरात्मा दया से भिगी हो, जो अत्यन्त बुद्धिमान हो, चतुराई से चतुर हो, मंत्र के बीजाक्षरों को जाननेवाला हो, ऐसा भव्य धर्मात्मा ही लोक में मंत्र साधक (मंत्री) हो सकता है ।।१०।।
एते गुरणा यस्य न सन्ति पुसः क्वचित् कदाचिन्न भवेत् स मन्त्री । करोति चेहर्पवशात् स जाप्यं प्राप्नोत्यनर्थ फणिशेखरायाः ॥११॥
[ संस्कृत टीका ]--'एते गरगा यस्य न सन्ति पुसः' यस्य पुरुषस्य एते गुरणा न सन्ति न विद्यन्ते । 'क्वचित्' यत्र क्वापि प्रदेशे । 'कदाचित्' करिमश्चित काले । 'सः' एवं विशिष्टः पुमान् । 'मंत्री मन्त्रवादी । 'न भवेत्' न स्यात् । 'सः पुरुषः । 'दर्पनशात उद्धतवृत्या। 'जाप्य' मन्त्रजाप्यं । करोति चेत्' यदि करोति । 'प्राप्नोत्यनर्थ फरिणशेखरायाः' पद्मावती देव्याः सकाशाद अनर्थं प्राप्नोति प्रापद्यते ॥११॥
हिन्दी टीका-उपरोक्त गुणों से युक्त अगर कोई व्यक्ति नहीं है, तो वह कभी भी मंत्रसाधक नहीं हो सकता है । यदि अहंकार में चूर होकर मंत्रसाधन करने लगे तो देवो पद्मावती के द्वारा हानि को प्राप्त होता है।
जो ऊपर गुण कहे हैं, उन गुगों से सहित ही मंत्रसाधक हो सकता है, अगर उपरोक, गगा नहीं हैं, तो कभी भी कोई भी मंत्र की साधना नहीं करनी चाहिये। अगर गगा रहित ब्यक्ति अहंकार में आकर मंत्रसाधन करने लगे तो नियम से उसको मंत्र सिद्ध नहीं होगा और उल्ला नुकसान ही होगा, देवी उमका नुकसान करा देगी, मंत्र साधक सावधान रहें ।।११।।
इत्युभयभाषाविशेखर श्री मल्लिषेप सूरि विरचिते भैरव पद्मावतीकल्पे मन्त्रिलक्षणाधिकारः प्रथमः।