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________________ ( १६४ ) [ संस्कृत टीका ] - 'भवतापि' त्वयापि । 'न बातव्यः' न देयः । कस्मै ? 'सम्यक्त्वविवजिताय' सम्यक्त्व विहीनाय । 'पुरुषाय' नराय । 'किंतु' श्रथवा । 'गुरुदेव समयिषु भक्तिमते' गुरुदेव समये भक्तियुक्ताय । 'गुणसमेताय' सकल गुण संयुक्ताय एवं गुण विशिष्टाय पुरुषाय दातव्यः ।। ५० ।। [हिन्दी टीका ] - यह मंत्र तुमको मैने दिया है, तुम इस मंत्र को मिथ्या दृष्टि लोग हैं उनको कभी नहीं देना, जो सच्चे देव, शास्त्र, गुरू के भक्त हैं सुपात्र हैं ऐसे गुणवान पुरुषों को ही देना ।। ५० ।। लोभादथवा स्नेहाद्दास्यसि चेदन्य समयभक्ताय । बालत्रोगोमुनियधपापं यत्तद्भविष्यति ते ॥५१॥ [ संस्कृत टीका ] - 'लोभात्' प्रर्थाभिलाषात् । अथवा 'स्नेहात्' व्यामोहात् । 'दास्यसि चेत् यदि इमां विद्यां दास्यसि । कस्मे ? 'अन्यसमयभक्ताय' पर समयभक्तियुक्ताय । तवा 'बालस्त्रीगोमुनिबधपापं यत्' बालक स्त्रीजन गोमुनिजन हननेन यत् पापम् । तद्भविष्यति ते' तत् पापं तव भविष्यति ॥ ५१ ॥ [ हिन्दी टीका ] - इस मंत्र विद्या को यदि लोभ से, स्नेह से अथवा अन्य स्वार्थ से मिथ्यादृष्टियों को दिया तो तुमको बाल हत्या, स्त्री हत्या, गोवध, मुनिबंध का पाप लगेगा ।। ५१ । इत्येवं श्रावयित्वा तं सन्निधौ गुरुदेवयोः । मन्त्री समर्पयेन्मन्त्रं साधनयोगतः ॥५२॥ [ संस्कृत टीका ]- 'तं' मन्त्रग्राहकम् । इत्येवं श्रावयित्वा' इत्यनेन प्रकारेण शपथं कारयित्वा । कथम् ? 'सन्निधौ गुरु देवयोः' गुरुदेवयोः सन्निधाने ।' 'मन्त्री' मन्त्रवादो । 'समर्पयेत्' नियोजयेत् । कम् ? 'मन्त्रम्' गुरुपरम्पर्यागतं मन्त्रम् । कथम् ? 'मन्त्रसाधनयोगतः' मन्त्राराधनविधानयोगात् ।। ५२ ।। [हिन्दी टीका ] - फिर मंत्रवादी शिष्य को देव गुरू की साक्षी देकर मंत्र साधन के विधानानुसार मंत्र देव - ऐसी गुरु परंपरा है ||५२||
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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