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( १८४ ) नाग को साथ चलाने का मंत्र तेजो नमः सहस्त्रादि मंत्र प्रपठतः फरणी। अनुयाति ततः पृष्ठं याहीत्युक्त निवर्तते ॥३०॥
[सस्कृत टोका]-'तेजो नमः सहस्त्रादि मन्त्रं प्रपठतः' ॐ नमः सहस्त्रजिह! इत्यादि मन्त्रां प्रपठतः पुरुषस्य । 'फरणी' सर्पः। 'अनुयाति ततः पृष्ठं' सन्मन्त्रपठित पुरुषस्य पृष्ठमनुगच्छति । 'याहीत्युक्त निवर्तते' स एवं सर्पः पुनरपि याहीत्युक्त व्याधुय्य गच्छति ॥३०॥
तन्मन्त्रौद्धार :- नमो सहस्त्रजिह्व! कुमुद भोजिनि! दीर्घकेशिनि! उच्छिष्ठभक्षिणी ! स्वाहा ॥ इति नाग सहागमन मंत्रः ॥
__[हिन्दी टीका]-ॐ नमो सहस्त्र जिह्व कुमुद भोजिनि दीर्घ केशिनि उच्छिष्ठ भक्षिरिण स्वाहा।
__इस मंत्र को पढ़ने वाले मंत्र वादी के साथ-साथ में सर्प चलने लगता है और चले जाओ कहने पर सर्प चला जाता है ।।३०॥
सर्प मुख किलन मंत्र, गति किलन मंत्र, वृष्टि किलन मंत्र ___ ह्री श्री ग्लो हु भूटान्तद्वितयेन फरिगमुखस्तम्भः ।
हुँ क्षू ठठेति गमने दृष्टिं हां क्षा ठठेति बन्धाति ॥३१॥
[संस्कृत टीका]-'उह्री श्री ग्लो हु । 'टान्तद्वितयेन' ठठेति मन्त्रेण । 'फणिमुखस्तम्भः' अनेन मन्त्रेण सर्पमुखस्तम्भो भवति । 'हुभूति गमने' हूँ इत्यनेन सर्पस्य गतिस्तम्भो भवति । दृष्टिं हाठठेति बध्नाति' सर्पस्य दृष्टिं हाँ क्षा ठठ इति मन्त्रेण बध्नाति । इति फरिणमुखगति दृष्टि स्तम्भन विधिः ॥३१॥
[हिन्दी टीका]-ॐ ह्रीं श्री ग्लौं हैं क्षं ठः ठः, इस मंत्र के जाप से सर्प का मुख कीलित होता है ।।
मंत्र :--हुँ २ ठः ठः, इस मंत्र से सर्प की गति का स्तंभन होता है ।
हाँ क्षाँ ठः ठः, इस मंत्र से सर्प की दृष्टि का स्तंभन होता है ।
सर्प को कण्डलाकार बनाने का मंत्र घाम सुवर्ण रेखाया गरुडाज्ञापयत्यतः । स्थाहान्तं मन्त्रमुच्चार्य कुण्डलीकरणं कुरु ॥३२॥