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________________ ( ४ ) कर्षणाधिकारम् । 'यन्नं वश्यकर' वशीकरणयन्त्र निरूपणाधिकारम् । 'निमित्तम्' दर्पणादिनिमित्ताधिकारम् । 'अपरं' अन्यत् । 'वश्यौषध' स्यादिवश्यौषधाधिकारम् । 'गारुडं' गारुडाधिकारम् । 'कल्पेऽधिकाराः' अस्मिन् कल्पे अधिकाराः। 'यथा' येन प्रकारेण । 'निगदिताः' प्रतिपादिताः । तथा' तेन प्रकारेण । 'अहं' श्री मल्लिषेणाचार्यः । 'क्रमशः' यथा परिपाट्या । 'वक्ष्ये' प्रतिपादयिष्ये ॥४॥ [हिन्दी टीका |-अब प्राचार्य मल्लिषेण इस भैरव पद्मावती कल्प में जिनजिन विषयों का वर्णन करेंगे, उन-उन विषयों का अनुक्रमणिका के रूप में वर्णन करते हैं। प्रथम साधक के लक्षण पश्चात् सकलीकरण क्रिया, महादेवी की पूजा का विधान, बारह प्रकार के यंत्रों के भेदों का उच्चाटन, स्तंभन क्रिया का वर्णन, स्त्री आकर्षरा क्रिया का वर्णन, वश्य क्रिया के यंत्रादि, दर्पणादि निमित का वर्णन, वशीकरा करने के लिये औषधिरूप तन्त्र और गारुडाधिकार कहेंगे, जो पूर्वाचार्य कह गये हैं। यहाँ आचार्य स्वयं अपने मन से कुछ नहीं लिख रहे हैं, जो उनको प्राचार्य परंपरा से मिलता है, उसी को कह रहे हैं ।।४।। इति वशविधाधिकार ललितार्या श्लोक गीति सवृत्तः । विरचयति मल्लिषेणः कल्पं पद्मावतीदेव्याः ॥५॥ [ संस्कृत टोका ]--'इति दविधाधिकारैः' इति प्राक् कथित वश प्रकाराधिकारैः । कथम्भूतैः ? 'ललितार्या श्लोक गीति सद्वतः' ललिता च या प्रार्या ललितार्या, श्लोकः-द्वात्रिंशदक्षरनिबद्धः, गीतीति उपगीतिः, सद्वतैः षड्विंशति जातिवृत्तः । "विरमयति' विशेषेरग रचयति । कः कर्ता ? मल्लिषेरणः । कम् ? कल्पम् । कस्याः ? 'पशावती देव्याः' भैरव पद्मावती देव्याः ॥५।। [हिन्दी टीका |--मुन्दर आर्या, गीति और श्लोकरूप अच्छे-अच्छे छन्दों से सहित इस भैरव पद्मावती कल्प को दश अधिकारों में श्री मल्लिषेरणाचार्य वर्णन करेंगे ।।५।। मंत्र साधक का लक्षण निजितमदनाटोपः प्रशमितकोपो विमुक्तविकथालापः । देव्यर्चनानुरक्तो जिनपदभक्तो भन्मन्त्री ॥६॥
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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