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________________ ( १४७ ) यादुद्धरिताच्छुभाशुभफलं वैषम्य साम्येसुधी रेतत् तथ्यमिहोदितं मुनिवरर्भच्याजधर्माशुभिः ॥२६॥ [संस्कृत टीका-'प्राय' बालवयुद्धति त्रिविधप्राय मध्ये नामैकम, 'उ:श' सा भौमानां राज्ञां मध्ये नामकं, 'नवी' गङ्गादिमहानदीनां मध्ये नामक, 'नवग्रह' प्रादित्यादिनवग्रहाणां मध्ये नामकम् 'नग' मन्दरादिपर्चतानां मध्ये नामक, 'व्याधि' बातपित्तश्लेष्मोद्भवानां प्रश्नपथिताक्षर संख्याम् । 'एकीकृत्य' तानि सर्वाण्यप्येकनाडू, कृत्वा । 'नखान्वितं तदराशिमध्ये विशत्य योजयित्वा । 'त्रिगुरिगत तत् सप्तराशि त्रिभिगुणितं कृत्वा, "तिथ्या पुनर्भाजितम्' पुनः पश्चात् त्रिगुरिणत राशि पञ्चदशभिः संस्य विभज्य । “ब यात्' कथयेत् । कस्मात् । 'उद्धरितात्' भागावशेषात् । कि ? 'शुभाशुभफल' शुभफलमशुभफलं च । कस्मिन् ? 'चषम्य साम्ये' विषमा शुभ फलं वयात, समाङ्क विरुद्ध फलं ब्रूयात् । कः ? 'सुधीः' धीमान् । 'एतत् तथ्यं' एतत् प्रश्न निमित्त निश्चितं सत्यम् । 'इह' अस्मिन् कल्पे । 'उदित' प्रतिपादितम् । कैः ? मुनिवरैः मुनि दृषभैः । कथम्भूतैः ? भव्याजधर्माशुभिः भच्या एव अब्जानि तेषां धर्माशुरादित्यस्तद्वतै मुनिभिः इति प्रश्नः ॥२६॥ [हिन्दी टीका -बालक, युवा और वृद्ध इन तीन में से एक का नाम, चक्रवत्तियों में से किसी एक का नाम, गंगादि महानदियों में से किसी एक का नाम, नवग्रहों में से किसी एक का नाम, मेरू आदि पर्वतों में किसी एक का नाम, वात, पित्त, कफ ब्याधाओं में से किसी एक का नाम, नाना प्रकार के फूलों में से किसी एक का नाम, बालक से लेकर फूल तक के नाम की और प्रश्नाक्षर की संख्या इन दोनों को एकत्र करके, उन एकत्र संख्या में २० संख्या को और जोड़कर फिर उसको त्रिगुरिगत करे, त्रिगुणित करने के बाद पन्द्रह अंक से भाग करे, जो शेष बचे उससे शुभाशुभ फल को जाने, यदि शेष सम अक्षर आवे तो विरुद्धफल होगा, यदि विषम संख्या आवे तो शुभ फल होगा, यह निमित ज्ञान रूपी प्रयोग भव्यरूपी कमलों को सूर्य के समान खिलाने वाले उत्तम २ मुनियों ने कहा है । यह प्रश्न निमित निश्चित ही सत्य होता है ।।२।। युद्ध में अद्धन्दुत्रिशुलयंत्र ज्ञान अद्धन्दु रेखाग्रगतं त्रिशूलं मध्ये च सम्यक्प्रधिलिख्य धीमान् । ऋशेऽमावस्याप्रतिपद्दिने तु यस्मिन् मृगाङ्को व्यवतिष्ठतेऽसौ ॥३०॥
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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