SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [संस्कृत टीका] 'अष्टसहस्त्रः' सहस्त्राष्टकैः । 'जातीपुष्प' मालती प्रसूनः। 'श्री वीरनाथ जिनपुरतः' श्रीवर्द्धमान स्यामि जिनस्याग्रे । 'जप्ते' जाप्ये कृते सति । 'सुन्दरदेवी' सुन्दरो नाम देवी । सिद्धयति' सिद्धि प्राप्नोति। केन? 'मन्त्रेण' वक्ष्यमाण मन्त्रण। कथम् ? 'सद्भक्त्या' सद्भक्ति विशेषेण ॥१६॥ मन्त्रोद्धार :- सुन्दरि ! परमसुन्दरि? ! स्वाहा । हिन्दी टीका-श्री महावीर स्वामी के सामने जाती पुष्पों से आठ हजार जाप करने से सुन्दरी देवी सिद्ध होती है । विशेष भक्ति से आराधना करे ।।१६।। जाप करने का मंत्र :----ॐ सुन्दरि परमसुन्दरि स्वाहा । ब्रह्मादि सुन्दरी शरदं होमान्तं करिषकान्तरे । अष्टपत्रेषु सर्वेषु लिखेत् परमसुन्दरी ॥२०॥ [संस्कृत टोका]-'ब्रह्मादि सुन्दरी शब्' उकारादि सुन्दरीपदम् । 'होमान्स' स्वाहान्तम् । 'कणिकान्तरे' उँ सुन्दरि ! स्वाहा इति कणिकाभ्यन्तरे' लिखेत् । 'प्राट पत्रेषु सर्वेषु' तत्करिणका बहिः प्रदेशे अष्टदलेषु । 'लिखेत् परम सुन्दरो' उपरम सुन्दरी स्वाहा इति पदं प्रत्येक सर्ववलेषु लिखेत् ॥२०॥ [हिन्दी टीका]-पाठ पांखुडी का एक कमल बनावे, कणिका में ॐ सुन्दरी स्वाहा, लिखे और पाठों पांखडीयों में ॐ परमसुन्दरी स्वाहा लिखे ।।२०।। कृष्णतिलतैलपूर्ण कुलालफरमृत्तिकाकृते पात्रे। पालतककृतवा दीपे न्यग्रोधवह्निभवे ॥२१॥ [संस्कृत टीका]-'कृष्ण तिलतल पूर्णे' कृष्णतिलोद्भूतल सम्पूर्णे । पुनः कथम्भूते ? 'कुलालकर मृत्तिकाकृते' कुम्भकारकराग्रगृहीतमृत्तिकया कृते । कस्मिन् ? 'पा' वीपमात्रे । 'मालतककृतवा' पालतकपटलावेष्टिया । 'दीपे' प्रदोपे । कथम्भूते ? 'न्यग्नोधवह्निभवे' वटवृक्षकाष्ठजनितग्निप्रज्वलिते। कुमारिकाद्यष्टविधार्चन प्राक्कथित विधान वज्ज्ञात्वा कर्त्तव्यम् । गोपनिमित्तमिदम् ॥२१॥ हिन्दी टीका]-शुम्हार के हाथ में लगी हुई मिट्टी से बनाये हुए दीपक में काले तिल का तल भरकर (लाक्षा) (लाख) पालक्तक की बत्ती बनाकर उस दीपक में डाले और उसके वाद, उस दीपक को वट वृक्ष की लकड़ी से जलावे ।।२१।। १. महासुन्दरि ! इति स पाठः ।
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy