________________
[हिन्दी टीका]-क्ले कार अथवा ब्ले कार को स्त्री की योनी में सिन्दूर के रंग जैसे वर्ग का चितवन करने से स्त्री द्रवित हो जाती है, मात्र द्रवित ही नहीं होती किन्तु मात दिन के अन्दर स्त्री आकर्षित कर देता है ।।३१।।
(सूरत कापडिया जी की प्रति में यह श्लोक ज्यादा है।) सिन्दूराहरण वास सन्निभ प्रभं ब्ले कार सत्पिडकम् कान्तागुहागतं प्रसंचलितमितं ध्यात्वा मनोरञ्जितम् । लाक्षारागमबिन्दु वर्ष वर्ष प्रस्यन्दि कामावरात सप्ताहेत वशं करोतु वनीतां तत्तचित्रं कुतः ॥३१॥
[हिन्दी टीका] -सिंदुरी लाल वस्त्र के समान प्रभावाले उत्तम पिण्ड ब्ले कोस्त्री के योनिस्थान में तेजी से घूमते हुए मन को प्रसन्न करने वाला, लाख की लालिमा की बून्दों के समूह को बरसाकर बहाता हुआ, ध्यान करने से स्त्री काम के वेग से यदि एक सप्ताह के अन्दर ही वश में आ जावे तो आश्चर्य ही क्या है ?
नोट :-यह श्लोक संस्कृत की प्रतियों में वा अहमदाबाद की प्रति में हमारे पास वाली प्रति में नहीं है, किन्तु सुरत की कापडिया जी से प्रकाशित प्रति में है, हमने वहां से उद्धरित किया है।
सूरत वाली प्रति में ब्ले' कार और हस्तलिखित प्रति में भी ब्ले कार का ही ध्यान करे लिखा किन्तु पद्मावती उपासना में वहां से पूर्व प्रकाशित संस्कृत टीका में क्ले कार का ध्यान करे लिखा है ।
ब्राह्मण मस्तक के शैः कृत्वा रञ्जु तया नरकपालम् । प्रावेष्टय साध्यदेहोद्वर्त्तनमल केशनखरपावरजः ॥३२॥ मनुजास्थि चूर्णमित्रं कृत्वा तनिक्षिपेत् पुरोक्तपुटे । ज्वरयति मन्त्रस्मरणात् सप्ताहादस्थिमथनेन ॥३३॥
[ संस्कृत टीका ]-'ब्राह्मणमस्सककेशैः' द्विजशिरोरुहैः । 'कस्वा रज्जुम्' तच्छिरोरुहै।' रज्जु कृत्वा । 'तया' रज्ज्वा । 'नरकपालं' नृकपालपुटम् । 'मावेष्टय' समन्ताद वेष्टयित्वा। 'साध्यदेहोद्धत नमलकेशनखरपादरजः' साध्य पुरुषस्य शरीरोद्वर्तन्मल शिरोरुहनखपादरेणून गृहीत्वा 'मनुजास्थि चूरणमिक्षम्' नरास्थि चूर्णमिश्रम्। 'कृत्वा' विधाय। 'तत्' मलादि चूर्णम् । 'निक्षिपेत्' स्थापयेत् । क्व ? 'पुरोक्तपुटे' प्रागुक्तनुकपालपुटे ।
१. कपालपुटे इति न पाठः ।