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[हिन्दी टोका]--इस प्रकार अंगानाकर्षण यंत्र विधि को पूर्वाचार्यों ने कहा, इस यंत्र को जिसको वश करना है उसके कपड़े पर अथवा खोपड़ी पर वा तांबे के पतरा पर, धतूरा के रस से, उसके पान की पीक से अथवा बच्छ नाग आदि द्रव्यों से लिखकर दीपक की शिखा पर तपाने से इष्ट स्त्री का आकर्षण होता है ।।३।।
स्री आकर्षण यंत्र चित्र नं. २५
नोट :-इस यंत्र की विधि में तीनों प्रति में अलग-अलग वर्णन है, मंत्र में एक प्रति में (अम्बे, अम्बाले, अम्बिके) है, संस्कृत प्रति में (अम्बिके अम्बालिके) है, इसी प्रकार मणिलालसाराभाई के यहां से प्रकाशित प्रति में है। उसी प्रकार यंत्र में भी, प्रथम मंडल के कोरणे में रं लिखा है, कहीं यं लिखा हुआ है, सं. प्रति में यं और सूरत से प्रकाशित में यं, इत्यादि अंतर है । मंत्र शास्त्रज्ञाता सुधार कर लिखे, हमने तो संस्कृत प्रति के मूल पाठ का अनुसरण किया है।
उ ह्रीं ह्रत्कमले गजेन्द्रवशकं सर्वाङ्ग सन्धिष्यपि मायामाथिलिखेत् कुचद्वितय योग्यू योनिदेशे तथा । को कारैः परिवेष्टय मन्त्रवलयं दद्यात् पुरं चानलं तद्वाोऽनिलभूपुरं त्रिदिवसे दीपाग्निनाऽऽकर्षणम् ॥४॥
[सस्कृत टीका]-'उह्रीं ह्रकमले हृदय कमल मध्ये ॐ ह्रीं इति बीजाक्षरं विलिखेत् । 'सर्वाङ्गसन्धिषु सर्वशरीर सन्धिषु । 'अपि' तथा । 'गजेन्द्रवशक' अङ्क शम्। 'कुचद्वितययोः' स्तनद्वितययोः । 'मायामाविलिखेत्' । ह्रो कारमाविलिखेत् । 'तथा' तेन प्रकोरेण । 'योनिदेशे' योनि प्रदेशे। 'म्यू' य्यू इति बीजम् । 'कोंकारैः परिवेष्टय' तद्र पबहिः प्रदेशे को कारैः समन्तात् वेष्टयित्वा । 'पुरं चानलम्' तन्मन्प्रयलयबहिः अग्निमण्डलं धयात् 'तबाह्य ऽनिलभूपुरम्' तदग्निमण्डलबहिः प्रदेशे वायुमण्डलं तदुपरिभूमण्डलं दद्यात् । 'त्रिदिवसे दोपाग्निनाकर्षणम्' दिनत्रयमध्ये प्रदीप शिखाग्निना प्राकर्षणं स्थात् ॥४॥
बलयमंत्रोद्धार :-उँ नमो भगवति ! कृष्णामाताङ्गिनि ! शिलावल्कल कुसुम १ रुप धारिणि ? किरात शवरि ! सर्वजनमोहिनि२ ! ह्रां ह्रो ह ह्रीं ह्रः अमुकां मम वश्यावृष्टि कुरु कुरु संवौषट् ।
१. वेषधारि इति ख पाठः । २. सर्वजनमनो मोहिनी इति ख पाठः ।