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________________ सम्पादकीय शास्त्रवार्ता के सम्पादन में किसी एक व्यक्ति का नहीं किन्तु अनेक महानुभावों का योगदान रहा है । निम्न लिखित इतिवृत्त को पढ़ने से यह भलीभाँति अवगन होगा । वि. सं. २०२६ में पूज्यपाद गुरुदेव भाचार्यश्री विजयभुवनभानुसूरि महाराज (उम बक्त पन्यास प्रवर श्री भानुविजय गणिवर) कलकत्ता की ओर विहार करते हुए वाराणसी पधारे । जिन के पास उन्होंने नव्यन्याय का अभ्यास किया था वे संपूर्णानन्द संरकृत युनिवर्सिटी के प्रोफेसर पंडितराज श्री बदरीनाथजी शुक्ल उस वक्त वहाँ ही थे, परस्पर मिले. अनेक दार्शनिक चर्चाप हुयी । परस्पर विचार-परामर्श हुआ नव यह निश्चित किया गया कि शास्त्रवार्ता की स्थाद्वादकल्पलता व्याख्या के अभ्यास का लाभ अनेक छात्रों को मिल सके एतदर्थ उसका हिन्दी विवेचन छपाया जाय । __पंडितजीन हिन्दी विवेचन के निर्माण की जिम्मेदारी अपने शिर पर दठायी । पांडित्यपूर्ण स्याद्वादकल्पलता का विवेचन यह कोई जैसे तसे पंडिन का काम भी नहीं था। हर्ष की बात है कि विवेचन के लिये व्युत्पन्न पंडित मिल गये । पंडिताजी ने वाराणसी में रह कर ग्रथम स्तबक का विवेचन पृण किया । पूज्य गुरुदेवश्री कलकत्ता-कानपुर दो चातुर्मास कर के गुजरात लौट आये । उन की कृपादृष्टि से अमदाबाद में मेरा न्याय का अध्ययन ठीक चल रहा था । पूज्यश्री का चातुर्मास जब सावरकुंडला में वि. सं २०३० में हुआ उस वक्त अमदावाद में हमने पं. दुर्गानाथ झा के पास इसी ग्रन्थ का अध्ययन प्रारम्भ किया था 1. सावरकुंडला पूज्य गुरुदेवश्री को यह बात ध्यान पर उपरोक्त प्रथम स्तघक का हिन्दी विवेचन अमदाबाद में मुद्रित कराने के लिये पूज्यत्रीने मेरे पाम भेज दिया 1 पंडितजी रहे यु.पी. के, अतः उन के हस्ताक्षर से नहीं थे कि अमदाबाद के कम्पोझीटर सरलता से पढ सके । इस लिये पहले तो अन्य के मूल-च्याख्या के पाठ से हिन्दी विवेचन को संबोजित करके लहिया के पास उस की प्रेस कोपी लिखायी। पंडितजीने हिन्दीविवेचन तो अच्छा किया था, किन्तु जिस प्रत के आधार से उन्हों ने विवेचन किया था उस पूर्वमुद्रित प्रत के पाठों में कहीं कहीं अशुद्धियाँ बहुन थी । उसका शोधन करने के लिये मैंने संवेगी उपाश्रय-अमदावाद के हस्तलिखित ज्ञानभंडार से एक प्राचीन प्रत निकाली और वह प्रत पूरे १ से १ स्तबक के मूल-व्याख्यापाठ के संशोधन में मेरे लिये अत्यन्त उपयोगी बन रही । शुद्ध पाठ की उपलब्धि से पंडितजी को भी अग्रिम स्तचकों के हिन्दी विवेचन में सरलता रही ।
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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