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________________ रुया. क. टीका-हिन्दी विवेचन ] [ ३२७ मोक्षहेतुत्वात् तादृशपारम्पर्येण मोक्षार्थितया तत्र प्रयुकत्वात् कथमन्यथा दुःषमाकालवर्तिनो मुमुक्षवस्तत्र प्रवर्तिध्यन्ते इति वाच्यम्, तास चारित्रस्य पारम्पर्येणैव मोक्षहेतुत्वाऽश्रवणात्, साक्षात्कारणस्य चारित्रस्याऽसति प्रतिबन्धके तद्भव एव मुक्तियापकत्वोपपत्तेः स्त्रीत्वस्य प्रतिबन्धकत्वे मानाभावात्, अन्यथा तत्र साक्षाच्चारित्रार्थितयैव प्रवृत्त्यापत्तेरिति । एवं 'मनुष्यस्त्री काचिद् निर्वाति, अविकलतत्कारणत्वात् पुरुषवत्' इत्यप्याद्दुः । तदेव स्त्रीमुक्तिसिद्धेः सिद्धाः पञ्चदश सिद्धमेदाः इति सिद्धमदः प्रासन्निकमिति सर्वमवदाततरम् ||५४॥ 7 [ स्त्री-मुक्ति साधक अनुमानप्रयोग ] उक्त प्रकार से विरोधी पक्ष के निराकरण एवं अनुकूल आगम से स्त्रों की मोक्षयोग्यता सिद्ध हो जाने पर अनुमान से भी उसकी सिद्धि सम्पादित की जा सकती है। अनुमान का प्रयोग इस प्रकार हो सकता है - मनुष्य स्वीजाति मुक्ति से उपहित व्यक्ति से युक्त है ( मुक्ति मापक देह पर्याय से युक्त है क्योंकि वह प्रत्रज्या ( सन्यास ) की अधिकारीजाति है जैसे पुरुषजाति 4 इस प्रसङ्ग में स्त्री मोक्ष विरोधियों का यह कहना कि बी को शो संन्यास में अधिकार प्राप्त हैं वह परस्परया - ( जन्मान्तर में पुरुष शरीर पर्याय की प्राप्ति द्वारा ) मांझ का साधक है | अतः प्रब्रज्याधिकारजातित्व से मनुष्य- स्त्री जाति में मोक्षप्रापक देह से युक्तता' के साधन में उक्त हेतु अयोजक है । इस कथन पर स्वीमोक्षवादी यदि ऐसा कहें कि 'यदि स्त्री जाति का संन्यास परम्परया मोक्षोपयोगी है तो अल्प प्रयत्न से साध्य ( आराध्य ), मोक्षहेतुभूत देशविरति आदि में ही स्त्री की प्रवृत्ति होनी चाहिए, न कि बहुप्रयत्न से साध्य सर्व विरति में प्रवृत्ति होनी चाहिए।' तो वह ठीक नहीं है, क्योंकि देशविरति आदि की परम्परा अनेक जन्मों से वटित है, उस परम्परा के मोक्ष का हेतु होने पर भी चारित्र ही अल्पजन्मों से घटित परम्परा से मोक्ष का हेतु है । इसलिए चारित्र की अल्प जन्म घटित परम्परा से मोक्ष के लिए सर्व संन्यास में स्त्री की प्रवृत्ति होना समीचीन है। यदि ऐसा न माना जायगा तो दुःखमाकाल में रहने वाले मोक्षार्थी उसमें कैसे प्रवृत्त होगे ? - किन्तु स्त्रियों के संन्यास ग्रहण को परम्परया मोक्ष का प्रयोजक मान कर उससे स्त्री पर्याय में मोक्षयुक्तता की सिद्धि में अप्रयोजक कहना यह दिगम्बर मत ठीक नहीं हैं। क्योंकि 'उनका चारित्र परम्परा से मोक्ष का साधक है' यह बात शास्त्र में श्रुत नहीं हैं, अपितु चारित्र मोक्ष का साक्षात्कारण है अतब्ध प्रतिबन्धक न होने पर स्त्री का चारित्र स्त्री शरीर के पर्याय में ही मोक्ष का साधक हो सकता है। यदि कहा जाय कि 'स्त्रीत्व ही मोक्ष की प्राप्ति में प्रतिबन्धक है' तो इसमें कोई प्रमाण नहीं है। यदि स्त्रीत्व मोक्ष का प्रतिबन्धक होगा तो संन्यास में मोक्ष के लिए स्त्री की प्रवृत्ति न होकर चारित्र के लिए ही होने की आपत्ति होगी जो इष्ट नहीं हैं, क्योंकि स्त्री मोक्ष के उद्देश्य से ही संन्यास में प्रवृत्त होती है । स्त्री मोक्ष के साधन में इस प्रकार के भी अनुमान का प्रयोग हो सकता है कि कोई कोई मनुष्य स्त्री मोक्ष प्राप्त कर सकती है, क्योंकि वह मोक्ष के समग्र कारणों से युक्त होती है । यह ठीक उसी प्रकार जैसे मोक्ष के समग्रकारणों से सम्पन्न पुरुष मोक्ष प्राप्त करता है ।
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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