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शास्त्रार्त्ताः स्त० ११ / ५४
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मुक्त्यनुपपतेरप्रयोजकत्वाभावात् । अयमेवाभिप्रायः न स्त्रीणां मुक्तिः, पुरुषेभ्यो हीनत्वात्, नपुंसकादिवत्' इति प्रभाचन्द्र प्रयोगस्यापि श्रुतापेक्षया हीनत्वस्य ग्रहणात् उक्तरीत्यांशतः सिद्धसाधनस्याऽदोषत्वाच्च " सामान्यतः पक्षत्वे सिद्धसाधनम् विवादास्पदभूतानां पक्षत्वे चेतरव्यावर्तकपक्षविशेषणानुपादाने पक्षस्य न्यूनत्वम् प्रकरणादेव तल्लाभे च पक्षस्यापि तत एव लभ्यस्यानुपादानप्रसङ्गः " इति दोषानवकाशादिति चेत् ? न, पूर्वाध्ययनं विनाऽऽयशुक्लध्यानद्वयाभावे प्राक्तनभवानधीत पूर्वाणां वर्तमानतीर्थाधिपत्यादीनामपि तदभावेन मुक्त्यमावापत्तेः । यदि च 'शास्त्र योगागम्यसामर्थ्ययोग वसेयभावेष्वतिसूक्ष्मेष्वपि तेषां विशिष्टक्षयोपशमप्रभवप्रभावयोगात् पूर्वधरस्येव बोधातिरेकसद्भावादाद्यशुक्लध्यानद्र्यप्राप्तेः केवलावातिक्रमेण मुक्तिमातिरिति न दोषः अध्ययनमन्तरेणापि भावतः पूर्ववित्त्वसंभवात्' इति विभाव्यते तदा निन्यानामप्येव द्वितयसंभवे दोषाभावात् । अनुमिति के होने में कोई बाधा नहीं है । क्योंकि ' आये पूर्वविद' इस तस्थार्थाधिगम महाशास्त्र के अनुसार पूर्वाध्ययन के अभाव में सम्पूर्ण कर्मवन के दाह में दावानल जैसा काम करने वाले आध दो शुक्ल ध्यानों का खियों में अभाव होता है और उनके अभाव में केवलज्ञान की उत्पत्ति न होने से मुक्ति नहीं होती । इसलिए द्वितीय हेतु में अप्रयोजकत्व नहीं है । यही अभिप्राय प्रभाषन्द्र के इस अनुमानप्रयोग का भी है कि 'पुरुषों से हीन होने से नपुंसक आदि के समान बियों की मुक्ति नहीं होती ।' स्त्रियों में पुरुष की अपेक्षा जो हीनता बतायी गयी है यत की अपेक्षा से ही विक्षित है। उत्तरीति से पचतावच्छेदकावच्छेदेन अनुमिति में अंशतः सिद्धिसाधन दोष नहीं है । इसलिये यह जो दोषापादन किया जाता है कि-' बी को सामान्य रूप से पक्ष करने पर सिद्धसाधन होगा और विशदास्पद स्त्री को पक्ष करने पर इतर विवादानास्पद के व्यावर्तक पक्ष विशेषण का उपादान न करने पर पक्ष की न्यूनता होगी। क्योंकि विवादानास्पद का पक्ष में अन्तर्भाव अनभिमत है । प्रकरण से ही इतर की व्यावृति होने से मात्र विवादास्पद की पक्षता का लाभ हो जाने से यदि इतर वारक पक्ष विशेषण के उपादान को अनावश्यक बताया जायगा तो प्रकरण से ही पक्ष का भी लाभ हो जाने से उसके भी अनुपादान की प्रति होगी ।" इस दोष को भी अवकाश नहीं है । क्योंकि स्त्री मात्र में पर्यायकाल में मुक्ति की अयोग्यता का साधन दोषमुक्त है 12
[ पूर्ववत अध्ययन विना भी मोक्षप्रामि - उत्तरपक्ष ]
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तो यह ठीक नहीं है। क्योंकि पूर्वाध्ययन के बिना आप शुक्ल ध्यानइय का अभाव होने से यदि मुक्ति का अभाव माना जायगा तो जिन्हों ने प्राकन जन्म में पूर्वाध्ययन नहीं किया है ऐसे तीर्थाधिपति तीर्थंकर आदि में भी आधशुक्ल ध्यानद्रय का अभाव होने से उनकी भी सुकि का अभाव होगा ।
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यदि यह कहा जाय कि तीर्थाधिपति आदि को ऐसे अत्यन्त सूक्ष्म विषयों में भी जो शास्त्रयोग से अगस्य एवं सामर्थ्ययोग से गस्य होते हैं। विशिष्ट क्षयोपशम होने से ऐसा प्रभाव प्राप्त होता है जिससे पूर्वघर के समान उन्हें भी बोधातिशय का लाभ हो जाता है और उसीसे शुक्लध्यान युगल की प्राप्ति होने से केवलज्ञान की प्राप्ति होकर मुक्ति का लाभ होता है । क्योंकि अध्ययन के बिना भी भावतः उन्हें पूर्वविता हो जाती है। " तो उत्तरीति से निर्मन्थस्त्रियों में भी शुक्ल ध्यानद्वय के सम्भव होने से उनकी मुक्ति मानने में कोई दोष नहीं है ।