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________________ २५६ । [शासवा० सं० ११/८ विशेषणशब्देन तादृक्षस्यैव तद्वस्तुनोऽभिहितत्वेन विशेष्यशब्दप्रयोगानुपपत्तेः, प्रयोगे वा पर्यायताऽऽपातात् तदुक्तम्- [प्र. वा० ३-५० ] " अन्यथैकेन शब्देन व्याप्त एकत्र वस्तुनि । बुद्ध्या वा नान्यविषय इति पर्यायता भवेत् ॥१॥” इति । अस्मत्पक्षे तु नायं दोषः, नीलोत्पलश्रतिजनितपतिविम्वाभ्यामनीलाऽनुत्पलव्यावृत्तस्याध्यसितबाह्यकरूपस्य विकल्पप्रतिबिम्बस्यानुरोधात् सांवृत्तसामानाधिकरण्योपपत्तेः, उभयोरभिन्नप्रतिविम्बजनकत्वरूपपर्यायत्वाऽयोगात् । यदपि 'लिक संन्या-क्रिया-कालादिभिः संबन्धोऽपोहस्याऽवस्तुत्वादयुक्तः, न च लिङ्गादिविविक्तः पदार्थः शक्यः संबन्धेनाभिधातुम् ; न च व्यावृत्याधारभूताया व्यक्तेस्तुत्वात् लिङ्गादिसंबन्धात् तदद्वारेणापोहस्याप्यसौं व्यवस्थाप्यः, व्यक्तनिर्विकल्पकज्ञानविषयत्वालिसंख्यादिसंबन्धेन भौर पक देश के विकल्प का उमावन किया जाना वाक्छल मात्र होने से नितान्त अनुचित है। यह भी शातव्य है कि विशेषण बोधक शब्द से विशेषण विशिष्ट विशेष्यभूत वस्तु का ही अभिधान होने पर विशेष्य बोधक पद के प्रयोग की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती । अपित उसका प्रयोग करने पर उससे भी विशेषण शब्द से बोध्य अर्थ काही बोध होने से विशेषण-विशेष्य बोधक पदों में पर्यायता की आपत्ति होती है प्रमाणवात्तिक में भी कहा है कि 'अन्यथा-नील आदि शब्दों को शबल अर्थ का अभिधायक मानने पर एक शब्द एवं तज्जन्य बोध से समग्र यस्तु की ध्याप्ति हो जाने से शब्दान्तर का कोई अन्य विषय न रह जाने से विशेष्य-विशेषण बोधक नील उत्पल आदि शब्दों में पर्यायता की आपत्ति होगी।' बौद्ध विद्वानों का कहना है कि उनके अपने मत में यह दोष नहीं है क्योंकि उनके मतानुसार नील पद और उत्पल पद के श्रवण से भिन्न दो प्रतिबिम्बों का जन्म होता है और उनसे एक पेस विकल्प प्रतिबिम्ब का उदय होता है जो अनील व्यावृत्त और अनुत्पलव्यावृत्त एक कल्पित बान मर्थ को ग्रहण करता है। इस विकल्प प्रतिबिम्ब के कारण ही नील और उत्पल पद में सामानाधिकरण्य होता है जो वास्तष न होकर सांवृत (काल्पनिक) होता है; क्योंकि उसका कारण, सांवृत बाय अर्थ को ग्रहण करने वाला प्रतिनिम्ब होता है। इस मान्यता के अनुसार नील, उत्पल आदि शम्दों में पर्यायता नहीं हो सकती, क्योंकि पर्यायता का अर्थ है अभिन्न प्रतिबिम्ब की जनकता, मो नील उत्पल आदि शब्दों में नहीं है। [ लिंगादि के साथ अपोह का सम्बन्धविचार ] अपोह के प्रस्तुत सन्दर्भ में एक यह भी बात कही गयी है कि-'अपोह अवस्तुभूत है, अत: लिङ्ग-संख्या-क्रिया-काल आदि के साथ उसका सम्बन्ध अयुक्त है। क्योंकि जो पदार्थ बिज आदि से शून्य है उसे लिङ्ग आदि से सम्बद्ध कहना शक्य नहीं है। यदि यह कहा जाय कि 'मतदुव्यावृत्ति का माधारभूत व्यकि वास्तविक है, उसके साथ लिक आदि का सम्बन्ध होने से उसके द्वारा अपोह के साथ भी लिङ्ग आदि के सम्बन्ध की उपपसि से सकती है' तो यह ठीक नहीं है क्योंकि व्यक्ति निर्विकल्पक ज्ञान का विषय होता है। अतः उसे सित
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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