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________________ २५८ ] [ शास्रवा० स्त० ११८ नीलोत्पलादिप्रतिभासाकारेप्वेब प्रातिभासिकवैशिष्ट्याद्याकारभावेनोपपत्तेः । 'नीलोत्पलादिशब्दा अर्थान्तरनिवृत्तिविशिष्टानांनाहुः' इत्याचार्योक्तः, वस्तुतो बुद्धयारूढार्थाभिधानेऽपि बाबार्थाध्यवसायिविकल्पोत्पादनात् , जात्याद्यभिधाननिराकरणप्रयोजनकोपचाराश्रयणेनादुष्टत्वात् । तदुक्तम्-[त० सं० १०६७ तः ७०] " अर्थान्तरनिवृत्त्या विशिष्टानिति यत् पुनः । प्रोक्तं लक्षणका र विक्षित: ॥१॥ अन्यान्यत्वेन ये मावा हेतुना करणेन या। विशिष्टा भिन्नजातीयैरसंकीर्णा विनिश्चिताः ।।२।। वृक्षादीनाहतान् ध्वानस्तद्भावाध्यवसायिनः । ज्ञानस्योत्पादनादेत जात्यादेः प्रतिषेधनम् ॥३॥ अपोह विशिष्ट को शब्दवाच्य मानने पर जो यह कह कर आधागधेय भात्र की अनुपपत्ति बतायी गयी कि 'अभावात्मक अपोह और स्वलक्षण वस्तु में सम्बन्ध न हो सकने से, उसके अपोह विशिष्ट न हो सकने के कारण, किसी अपोह विशिष्ट अवन्नु को ही शब्द का धान्य मानना पडेगा, और यह सम्भव नहीं हो सकता क्योंकि अपोह और उससे विशिष्ट अर्थ दोनों के अभायात्मक होने से उनमें आधाराधेयभाव नहीं हो सकता-वृह अनुपपत्ति भी नहीं हो सकती । क्योंकि वास्तव में अपोह विशिष्ट अर्थ को शहद का वाच्य मानना अभिप्रत नहीं है। आशय यह है कि अपोह विशिष्टरूप में जिस अर्थ को शब्दवाच्य मानना है उसमें अपोह का वास्तव वैशिष्ट्य अपेक्षित नहीं है, और अवास्तव शिष्ट्य अभावों में भी मानने में कोई बाधा नहीं है। [ दिग्नाग के कथन में आशय की स्पष्टता ] 'नीलोत्पल आदि शब्द अनीलध्यावृत्ति और अनुत्पलव्यावृत्ति विशिष्ट अर्थ के वाचक है। दिग्नाग केस कथन का जो यह कह कर निराकरण किया गया कि अनीलल्यावृत्ति और अनुत्पलव्यावृत्ति के अभाषरूप होने से पक दूसरे का आश्रय न हो सकने के कारण नीलोत्पल शब्द को अर्थान्तरध्यावृत्ति विशिष्ट अर्थ का घामक बताना असङ्गल है' वह ठीक नहीं है क्योंकि नीलोत्पल शब्द से अवगत होने वाले प्रतिभासाकार नील और उत्पल में अनीलव्यावृत्ति और अनुत्पलल्यावृत्ति का वास्तव येशिष्ट्य न हो सकने पर भी प्रातिभासिक वैशिष्ट्य सम्भव है, नीलोत्पल शब्द से उसी वैशिष्ट्य का बोध होता है । ____ आशय यह है कि भाचार्य दिग्नाग नीलोत्पल शब्द का अर्थान्तरध्यावृत्तिविशिष्ट अर्थ का पायक बता कर यह कहना चाहते हैं कि नीलोत्पल शब्द से नील और उत्पल शब्द के अनीलठयावृत्ति और अनुत्पलव्यावृत्तिरूप अर्थों में यौद्धिक वैशिष्ट्य होने के आधार पर उक्त निवृत्ति से विशिष्ट बाा अर्थ का बोध होता है। अतः नीलोत्पल शब्द के वाच्यरूप में नीलत्य, उत्पलत्व आदि भावात्मक जाति की कल्पना अनावश्यक है। तत्त्वसंग्रह में कहा भी गया है कि-आचार्य ने जो यह बात कही है कि 'शब्द अर्थान्तर. निवृत्ति से विशिष्ट अर्थ का अभिधान करता है उसका विषक्षित अर्थ निम्नोक्त है ।।१।। 'जो वृक्षादि भाव यानी अर्थ अपने हेतु द्वारा या अपने करण द्वारा अन्य घ्यावृत्तरूप से विशिष्ट तथा भिन्न जातियों से मसंकीणे-विलक्षणरूप में सुनिश्चित है ।। २॥ उन वृक्ष आदि अर्थों को शब्द अभिहित करता है। यह उपचार किया है, क्योंकि शब्द से अर्थान्तरनिवृत्ति विशिष्ट अर्थ को अध्यवसित करने वाले शान की उत्पति होती है। भावारमक जाति आदि का निषेध ही उपचार का प्रयोजन है ॥ ३ ॥
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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