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[ शाबवार्ताः स्त० ११/८ धियोऽभावात् , तया विशेष्यानुपरक्तेश्व, भावा-ऽभावयोर्विरोधात् । तदाह-- " न चाऽसाधारणं वस्तु गम्यतेऽपोहबत्त्या । कथं वा परिकल्प्येत संबन्धो वस्त्ववस्तुनो ! ॥१॥ स्वरूपसत्त्वमात्रेण न स्यात् किञ्चिविशेषणम् । स्वबुद्ध्या रज्यते येन विशेष्यं तद् विशेषणम् ॥ २ ॥ न चाप्यश्वादिशब्देभ्यो जायतेऽपोहबोधनम् । विशेष्यबुद्धिरिष्टेह न चाज्ञातविशेषणा ॥ ३ ।। न चान्यरूपमन्याछ कुर्याज्झानं विशेषणम् | कथवान्याशे ज्ञाने तदुच्येत विशेषणम् ! ॥ ४ ॥ अथान्यथा विशेष्येऽपि स्याद् विशेषणकल्पना । तथा सति हि यत्किञ्चित् प्रसज्येत विशेषणम् ।। ५ ।। अभावगम्यरूपे च न विशेष्येऽस्ति वस्तुता । विशोषितमपोहेन वस्तुवाच्यं न तेऽस्त्यतः ।। ६॥" इति [लो० वा० अपोह० ८६ तः ९१ तत्त्वसंग्रहे ९४५ तः ९५०
अपिच, व्यक्तीनामवाच्यत्वेनाऽनपोह्यत्वात् सामान्यस्य तथात्वेन वस्तुत्वं स्यात् । अपोहास्तु नापोह्याः, अभावरूपत्यागेन वस्तुत्वापातात् , वस्तुत्वनियतत्वाञ्च निषेधप्रतियोगित्वस्य ।
तदुक्तम्-[ श्लो० वा० अपोह. २५-२६ तत्त्वसंग्रहे ९५४-५५ ] "यदा चाऽशब्दवाच्यत्वाद न व्यक्तीनामपोशाता । तदापोह्येत सामान्यं तस्यापोहाच वस्तुता ॥१॥
प्रलोकवार्तिक में कहा भी गया है कि "असाधारण-स्थलक्षणवस्तु अपोह के आश्रयरूप में शात नहीं होती, वस्तु और अवस्तु के मध्य समय की फरूपमा को हो सकता है ६॥
कोई भी वस्तु स्थरूपसत् होने मात्र से विशेषण नहीं बन जाती, अपितु जो अपनी बुद्धि ले विशेष्य को अनुरक्षित करती है वही विशेषण होती है ॥२॥ ____ अश्य आदि शब्दों से अपोह का बोध नहीं होता। विशेषण के शान के बिना विशेष्य की बुद्धि इष्ट भी नहीं है ॥३॥ ___ स्वाकारवाला विशेषण अन्याकार शाम को उत्पन्न करने में समर्थ नहीं, यदि यह स्वाननुरूप ज्ञान को उत्पन्न करेगा तो विशेषण कसे कहा जायगा: ॥४॥
यदि अन्य प्रकार से प्रायमान विशेष्य में रूपान्तर को विशेषण माना जायगा तो कोई भी वस्तु कहीं भी विशेषण होने लगेगी ॥५॥ __अभाव द्वारा ज्ञातव्य विशेष्य, वस्तुरूप नहीं हो सकता, क्योंकि भाव-अभाव में विरोध होता है अतः अपोष्ट से विशिष्ट वस्तु बाच्य नहीं हो सकती ॥६॥
[ अपोह्य की अनुपपत्ति ] अपोह के विपक्ष में एक यह भी बात है कि अपोह के व्यावर्तनीय का उपपादन न हो सकने से भी अरोह को मान्यता नहीं दी जा सकती। जैसे-व्यक्ति-स्वलक्षण वस्तु को अपोन नहीं माना जा सकता, क्योंकि वह शब्दवाच्य नहीं है। सामान्य शब्दवाच्य अवश्य है किन्तु उसे भी अपीश्य नहीं माना जा सकता, क्योंकि उसे अपोध मानने पर वह भी वस्तु हो जायगा, क्योंकि अपोह्यता-भेवप्रतियोगिता वस्तुत्व की व्याप्य होती है। अपोह को भी अपोध नहीं माना जा सकता, क्योंकि शवाच्य होने से उसमें अपोसत्व की सम्भावना तो हो सकती है किन्तु उसे अपोध मानने पर उसकी अभावरूपता का विलय हो जाने से उसकी अपोहरूपता